यह भी पढ़ें:
Dhan Kharidi: धीमी गति से हो रही धान खरीदी, किसानों की बढ़ी परेशानी सहसपुर लोहारा विकासखंड अंतर्गत ग्राम धनगांव निवासी युवा किसान गोपी वर्मा(24)जो अपने पुश्तैनी जमीन पर ड्रीप एरीगेशन पद्धति से डेढ़ एकड़ भूमि पर थाइलैंड व बैंगलोर वैरायटी के गेंदा फूल की खेती शुरू की है। अब रंग-बिरंगी फू लों सहित पौधा लहलहा रहे हैं। गोपी वर्मा ने बताया कि तीन साल पहले महाराष्ट्र गया वहां गेंदा
फूल की खेती की जानकारी ली और धीरे-धीरे कम रकबा पर खेती शुरू की। उनको यह खेती रास आ गई। अब वह बैंगलोर व थाइलैंड से गेंदे का बीज लाकर फूलों की खेती कर रहे हैं। वहीं साल में 3 बार गेंदा फू ल तैयार होता है। वहीं उत्पादन 8 से 10 टन होती है। इस हिसाब से 5 से 6 लाख रुपए की उत्पादन ले रहे हैं।
45 दिनों में फसल तुड़ाई के लिए तैयार
गेंदा फूल की खेती की सबसे खास बात है कि 45 से 60 दिनों में फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके अलावा इसे बारहमासी पौधा भी माना जाता है। साल भर में
किसान तीन बार उत्पादन ले रहे हैं। इसके अलावा हर शुभ त्योहारों में उपयोग होने की वजह से इसकी मांग भी बनी रहती है। राजय के बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, कांकेर, डोंगरगढ़ जैसे शहरों में डिमांड ज्यादा हैं वहां इसका व्यापार अधिक होता।
डेढ़ लाख तक खर्च
फूलों की खेती कर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले गोपी बताते हैं कि त्योहारी सीजन में गेंदे की डिमांड ज्यादा रहती है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों में इस वैरायटी के गेंदे फूल का रेट करीब 30 रुपए से लेकर 50 किलो है। गोपी की मानें तो एक पौधा अमूमन 5 से 8 रुपए लागत पहुंचती है इस हिसाब एकड़ में 40 हजार का पौधा, बांस चाहली बनाने में 40 हजार, खाद और किटनाशक दवाई करीब 20 से 30 हजार रुपए और औसतन फू ल तुड़ाई मिलाकर करीब एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च आती है।
12 माह फूल दे रहे
गर्मी वाली फ सल के लिए गोपी ने थाइलैंड से गेंदे के बीज मंगाकर खेती कर रहे हैं। अपने यहां के गेंदे के फू ल तीन-चार महीने तक फू ल देते हैं, जबकि थाईलैंड व बैंगलोर वैरायटी के गेंदे के पौधे 12 महीने फू ल देते हैं। थाईलैंड से मंगाए गेंदों को बुके में भी लगा सकते हैं। फिलहाल वह पीले, लाल और सफेद गेंदे की खेती कर रहे हैं, जिसे आसपास के किसान भी इस खेती को देखने के लिए आते हैं और उनसे जानकारी लेते हैं। उनका कहना है परंपरागत फ सलों की खेती में उतना फ ायदा नहीं होता है, जितना फू लों की खेती से कमा रहे हैं।