मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक || 2. विपत्ति दूर करने के लिए
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक || 3.सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
वंदौ बाल रूप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू || 5.वश में करने के लिए
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम || 6.संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
सकल विघ्न व्यापहि नहिं तेही |
राम सुकृपा बिलोकहिं जेही || 8.रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सब रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा || 9. बुखार दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहिं काहुहि व्यापा ||
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके || 11. खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढ़ाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढ़े अनुग्रह तोरे ||
13. घर में सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहिं |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए
गुरू गृह पढ़न गए रघुराई |
अल्प काल विद्या सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पद कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढ़ाने के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढ़ाने के लिए
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21. सुख प्रप्ति के लिए
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
सेवहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई || 23. बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करहि मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत ***** होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए
राम सदा सेवक रुचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरुज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षणहीना |
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||