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कासगंज

बाज पक्षी से सीखें बच्चों के साथ क्या करें, पढ़िए प्रेरणादायी कहानी

बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनिया की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए।

कासगंजApr 08, 2019 / 07:15 am

अमित शर्मा

Eagle

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बाज पक्षी को हम ईगल या शाहीन भी कहते हैं। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते हैं, उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसा कठिन प्रशिक्षण किसी और का नहीं होती है।
मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 किलोमीटर ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर अमूमन जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है। यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है? तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।
Eagle
धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग किलोमीटर तक उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। सात किलोमीटर के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते हैं। लगभग नौ किलोमीटर आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है, जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।
अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है, लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है। जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700-800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है कि वो उड़ सके।
Eagle
धरती से लगभग 400-500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त में लेता है और अपने पंखों के दरम्यान समा लेता है। यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है. जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता। यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है। तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है जो अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।
सीख

हिन्दी में एक कहावत है… “बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नहीं उड़ते।” बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनिया की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए। वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर, आपके बच्चों को “ब्रायलर मुर्गे” जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नहीं सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नहीं सकता क्योंकि गमले के पौधे और जंगल के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।”
प्रस्तुतिः अतुल बंसल

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