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कासगंज

यमलोक में चित्रगुप्त हैं जो हमारे कर्मों का विवरण लिखते हैं, पढ़िए वास्तविकता क्या है?

ज्ञानवान, विचारवान और भावनाशील ह्रदय वाले व्यक्ति जब दुष्कर्म करते हैं – तो उनका चित्रगुप्त उस करतूत को ‘बहुत भारी पाप’ की श्रेणी में दर्ज कर देता है।

कासगंजMay 05, 2019 / 06:30 am

अमित शर्मा

chitragupta

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1. हम जिस इच्छा से जिस भावना से जो काम करते हैं उस इच्छा या भावना से ही हमारे पाप-पुण्य का नाप होता है। जीव जितना ही ईश्वरीय नियमों पर चलता है अथवा उन्हें तोड़ता है, उतनी ही तौल के अनुसार उसे अच्छा या बुरा कर्मफल मिलता है। इसलिए ईश्वर में और उसके न्याय में विश्वास रखना मनुष्य और समाज के लिए परम कल्याणकारी है।
2. गरुड़ पुराण में वर्णित अलंकारिक विवरण ‘यमलोक में चित्रगुप्त नामक देवता’ प्रत्येक प्राणी के भले-बुरे कर्मों का विवरण प्रत्येक समय लिखते रहते हैं। मृत्यु के बाद प्राणी को इसी के आधार पर शुभ कर्मों के लिए स्वर्ग और दुष्कर्मों के लिए नर्क प्रदान किया जाता है।
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3. उक्त वर्णन वास्तविक स्थिति का एक सांकेतिक सारांश मात्र है। जिसे जन सामान्य सरलता से समझ कर तदनुसार दुष्कर्मों से दूर रहने का प्रयास कर सकें।

4. अब यह सर्वविदित वैज्ञानिक तथ्य है कि जो भी भले-बुरे कार्य ज्ञानवान प्राणियों द्वारा किए जाते हैं उनका सूक्ष्म चित्रण अन्तःचेतना में होता रहता है। भले-बुरे कर्मों का “ग्रे मैटर” के परमाणुओं पर यह चित्रण पौराणिक चित्रगुप्त की वास्तविकता को सिद्ध कर देता है।
5. गुप्त चित्र, गुप्त मन, अन्तःचेतना, सूक्ष्म मन आदि शब्दों के भावार्थ को ही चित्रगुप्त शब्द प्रकट करता हुआ जान पड़ता है।

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6. यह चित्रगुप्त निःसन्देह हर प्राणी के हर कार्य को हर समय बिना विश्राम किए अपनी बही में लिखता रहता है। सबका अलग-अलग चित्रगुप्त होता है। जितने प्राणी हैं- उतने ही चित्रगुप्त हैं।
7. स्थूल शरीर के कार्यों की सुव्यवस्थित जानकारी सूक्ष्म चेतना में अंकित होती रहे तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

8. जैसे बगीचे की वायु, गन्दे नाले की वायु आदि स्थान भेद के कारण अनेक नाम वाली होते हुए भी मूलतः विश्व व्यापक वायु तत्व एक ही है- वैसे ही अलग-अलग शरीरों में रहकर भी अलग-अलग काम करने वाला चित्रगुप्त देवता भी एक ही तत्व है।
9. हमारे पाप-पुण्य का निर्णय काम के बाहरी रूप से नहीं वरन् कर्ता की इच्छा और भावना के अनुरूप होता है। हम जिस इच्छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं- उस इच्छा या भावना से ही हमारे पाप-पुण्य का नाप होता है।

10. यह इच्छा जितनी तीव्र होगी उतना ही पाप-पुण्य भी अधिक एवं बलवान होगा। हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग कानून व्यवस्था होती है।

11. अशिक्षित, अज्ञानी, असभ्य व्यक्तियों को कम पाप लगता है। ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ भला-बुरा समझने की योग्यता बढ़ती जाती है, विवेक प्रबल हो जाता है। ज्ञानवान, विचारवान और भावनाशील ह्रदय वाले व्यक्ति जब दुष्कर्म करते हैं – तो उनका चित्रगुप्त उस करतूत को ‘बहुत भारी पाप’ की श्रेणी में दर्ज कर देता है।
प्रस्तुतिः डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित, सोरों

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