scriptकाम खेती का पहचान बनी है गुरूजी की | Sohanpal has been teaching in villages for four decades | Patrika News
करौली

काम खेती का पहचान बनी है गुरूजी की

गुढ़ाचन्द्रजी/ बालघाट . वो सरकारी शिक्षक नहीं। न मानदेय लेते हैं लेकिन बच्चों को पढ़ाने का उनको ऐसा जुनून है कि चार दशक से गांवों जाकर बच्चों को पढ़ाते रहते हैं। इस कारण से जिले में बालघाट के समीप (Sohanpal has been teaching in villages for four decades) पाड़ली निवासी ८० वर्षीय सोहन मीणा की इलाके में पहचान गुरुजी की है। जीवन के अंतिम दौर में भी उनका पढ़ाने का जुनून खत्म नहीं हुआ है और वो बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देते रहते हैं।

करौलीSep 05, 2019 / 10:15 am

vinod sharma

काम खेती का पहचान बनी है गुरूजी की

काम खेती का पहचान बनी है गुरूजी की

गुढ़ाचन्द्रजी/ बालघाट . वो सरकारी शिक्षक नहीं। न मानदेय लेते हैं लेकिन बच्चों को पढ़ाने का उनको ऐसा जुनून है कि चार दशक से गांवों जाकर बच्चों को पढ़ाते रहते हैं। इस कारण से जिले में बालघाट के समीप (Sohanpal has been teaching in villages for four decades) पाड़ली निवासी ८० वर्षीय सोहन मीणा की इलाके में पहचान गुरुजी की है। जीवन के अंतिम दौर में भी उनका पढ़ाने का जुनून खत्म नहीं हुआ है और वो बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देते रहते हैं।
सोहनलाल का पढ़ाने का कोई एक तय ठिकाना नहीं है। साइकिल लेकर वो किसी भी गांव में जा पहुंचते हैं और बच्चों को पढ़ाने लगते हैं। वह गणित, विज्ञान व अंग्रेजी के सवालों केा चुटकियों में हल कर देते हैं। इस कारण से इलाके के विद्यार्थी भी मुरीद हैं। गांवों में कोचिंग सेन्टर तो हैं नहीं, ऐसे में विद्यार्थी अपनी दिक्कतों के लिए सोहनबाबा का इंतजार करते रहते हैं या फोन करके उनको बुलाते हैं। वह बालघाट सहित आसपास के गांवों के सरकारी-निजी विद्यालयों में साइकिल से नि:शुल्क पढ़ाने भी पहुंच जाते हैं। सोहनपाल अंग्रेजी फर्राटे से बोलते हैं। सोहनपाल ने अनपढ़ लोगों को भी साक्षर करने की मुहिम शुरू कर रखी है। सोहनपाल के अनुसार ज्ञान के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। शिक्षित बनने के लिए लगन होनी चाहिए।

संघर्षो में निकला जीवन
सेाहनपाल अपने पिता जिन्सीराम व मां चंपा देवी के इकलौते पुत्र हैं। १० वर्ष की उम्र में ही पिता का निधन होने पर परिवार की परेशानियों से जूझते हुए उन्होंने १९६३ में मैट्रिकुलेशन पास की। घर की स्थिति कमजोर होने से वे आगे नहीं पढ़ सके। इस कारण सरकारी नौकरी नहीं लग सकी और खेती को अपना जीवकोपार्जन का माध्यम बनाया। लेकिन मन में शिक्षा की अलख जगाने का जज्बा होने से वो बच्चों को नि:शुल्क ज्ञान दे रहे हैं।

चार पुत्र व दो पुत्रवधु सरकारी सेवा में
सरपंच प्रकाशी मीना ने बताया कि युवावस्था में सोहनपाल ने मेहनत करके अपने बच्चों को पढ़ाया। सोहनपाल का सबसे बड़ा बेटा व्याख्याता, दूसरा अध्यापक, तीसरा चिकित्सक व चौथा वरिष्ठ अध्यापक है। एक पुत्रवधु चिकित्सक व एक अध्यापिका है। एक पुत्र खेती को संभाल रहा है।

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