अधिक नमी का पड़ता है असर
गोपाल लाल शर्मा सहायक निदेशक कृषि विस्तार गंगापुर सिटी ने बताया कि नमी अधिक होने पर रोग तेजी से फैलता है। अधिक आद्रता और 18-25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रोग अधिक फैसला है। यह कवक जीवाणु पैदा करता है, जो हवा के साथ फैलते हैं। सहायक कृषि अधिकारी कैलाश चन्द्रवाल ने बताया कि रोग पर नियंत्रण के लिए फजीसाइ दवा 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या टैबूकोनाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। मेटालेक्सिल 8 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 64 प्रतिशत डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा अधिक सिंचाई नहीं करें। यूरिया अधिक प्रयोग नहीं करें।
कृषि अधिकारियों के अनुसार यह रोग स्कलेरोटीनिया स्क्लेरोसियोरम नामक फफूंद के प्रकोप से उत्पन्न होता है। इस रोग से तने के निचले भाग में मटमैले या भूरे रंग के फफोले दिखाई देते हैं तथा ये रुई जैसे सफ़ेद जाल से ढंके हुए होते हैं। पौधे मुरझाकर तने व शाखाए टूटने लगती है तथा पतियों पर निचले भाग में पीले धब्बे बन जाते हैं। प्रभावित तने को चीर कर देखने पर रुई जैसे कवक वृद्धि दिखाई देती है। इससे तना सड़कर खोखला हो जाता है तथा फट जाता है। तने के अन्दर काले उड़द के जैसे दाने बन जाते हैं।