सुबह पत्रिका टीम ने शहर के विभिन्न आंगनबाड़ी केन्द्रों का जायजा लिया। ज्यादातर जगह बच्चों की संख्या नगण्य मिली। कई केन्द्रों को देखकर लगा कि इन केन्द्रों का निरीक्षण शायद ही कभी विभागीय अधिकारियों ने कभी किया हो।
विभागीय मेहरबानी के चलते ज्यादातर केन्द्र मनमर्जी से संचालित हो रहे हैं। कई केन्द्र घरों के बिल्कुल अंदर के कमरों में संचालित हैं, जहां दीगर व्यक्ति पहुंच ही नहीं सके। पहचान के लिए लिखावट कहीं नजर नहीं आती। यूं तो आंगनबाड़ी केन्द्र किसी सरकारी बिल्डिंग या स्कूल में होने चाहिए। जगह के अभाव में किराये पर कमरा लेकर इन्हें संचालित किया जाता है, लेकिन शहर में ज्यादातर केन्द्र घरों में ही चल रहे हैं, लेकिन विभागीय अधिकारी इस ओर देख तक नहीं रहे। केन्द्र पर कितना पोषाहार आ रहा है और वह कितना बंट रहा है। इसका लेखा-जोखा सिर्फ कागजों तक ही है।
इसकी मुख्य वजह यह है कि केन्द्रों पर बच्चों की उपस्थिति बेहद कम रहती है। ऐसे में कार्यकर्ता यहां मनमर्जी तरीके से पोषाहार और बच्चों के लिए नाश्ता मंगाती हैं। पोषाहार की मॉनीटरिंग विभागीय अधिकारियों की ओर से नहीं होने की बात भी सामने आई। शहर में पोषाहार वितरण करने वाले समूह भी ऐसे हैं, जो महज एक ही केन्द्र को पोषाहार दे रहे हैं। यह सब कुछ यहां मिलीभगत के चलते ही हो रहा है। विभाग ने पोषाहार की गुणवत्ता जांचने की जहमत उठाई ही नहीं है।
यह मिले टीम को हालात
शहर के वार्ड नंबर १४ का केन्द्र गलियों में अंदरुनी हिस्से में संचालित मिला। इसकी पहचान का कोई बोर्ड यहां नहीं था। बच्चे की उपस्थिति महज एक ही मिली। वार्ड नंबर १७ के गुर्जरपाड़ा में आंगनबाड़ी केन्द्र देरी से खुला। पड़ोसियों ने बताया कि सेंटर पर बच्चे पढऩे आते हैं। शहर के वार्ड नंबर २६ के नौचोखिया मोहल्ले में बच्चों की उपस्थिति दुरुस्त मिली। यहां महिला सुपरवाइजर पुष्पा भी मॉनीटरिंग के लिए मिलीं। शहर के वार्ड नंबर २२ एवं २१ में संचालित आंगनबाड़ी केन्द्रों पर कोईनजर नहीं आया। टीम के पहुंचने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आ गईं, लेकिन बारिश की वजह से बच्चों का आना नहीं बताया गया। वार्ड नंबर १९ में बच्चे नहीं मिले। वहीं वार्ड नंबर ११ के आंगनबाड़ी केन्द्र पर महज तीन ही बच्चे बैठे थे। यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मौजूद मिलीं।
इनका कहना है
सरकार की ओर से बिल्डिंग के लिए बेहद कम राशि दी जाती है। भवन के नाम पर महज 500 रुपए मिलते हैं। ऐसे में केन्द्र घरों में चल रहे हैं। आज कल छोटे बच्चों को भी स्कूल भेज देते हैं। ऐसे में केन्द्र पर बच्चे कम ही आ पाते हैं। हालांकि हम समय-समय पर अभिभावकों को मॉटिवेट करते हैं।
– उर्मिला शर्मा, उपनिदेशक महिला एवं बाल विकास विभाग करौली