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जोधपुर

क्या आपने देखा है दुनिया का सबसे बड़ा रावणहत्था, देखें कैसे बना ये राजस्थानी वाद्ययंत्र

भाकरासनी गांव के भोपों के साथ मिलकर किया प्रयोग
 

जोधपुरMar 20, 2018 / 02:45 pm

Harshwardhan bhati

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जोधपुर . सूर्यनगरी के युवा शॉर्ट फिल्ममेकर प्रवीण सिंह राठौड़ ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर राजस्थानी संस्कृति के प्रतीक माने जाने वाले रावणहत्था के साथ अनूठा प्रयोग किया है। प्रवीण और साथियों ने पारंपरिक वाद्ययंत्र रावण हत्था का हाइब्रिड वर्जन बनाया है। सही शब्दों में कहा जाए तो करीब 2 फीट के रावणहत्थे को साढ़े सात फीट का बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाने का दावा प्रस्तुत किया है। प्रवीण ने बताया कि आज तक ऐसा रावणहत्था शायद ही कहीं बना होगा। इसे बनाने की कहानी भी खासी रोचक है।
प्रवीण ने बताया कि भोपा जाति के लोग प्राचीन समय से रावणहत्थे के साथ अपने गीत-संगीत का जादू बिखेरते आए हैं। लेकिन फ्यूजन और मॉडर्न संगीत की भीड़ में वे कहीं खो जाने लगे हैं। म्यूजिक कॉन्सर्ट आदि आयोजनों में भी राजस्थान के अन्य संगीत व वाद्ययंत्रों को अच्छी पहचान मिल जाती है। वहीं रावणहत्थे का प्रयोग हाशिए पर आने लगा है। इसे बनाने और गाने वालों की संख्या भी दिनोंदिन कम होने लगी है। ऐसे में युवा पीढ़ी का ध्यान आकर्षित करने और लोगों को इस संस्कृति से जोडऩे की भावना के चलते उन्होंने एक बड़े रावणहत्थे को बनाने की ठानी और भाकरासनी गांव स्थित भोपों के परिवारों के साथ मिलकर इसे मूर्त रूप दिया।
कम होने लगी है भोपों की संख्या

उनके इस कार्य में गांव के सुगनाराम, शिवपाल राम, मनवरी और अमरीका की प्रोफेसर सिंडी गोल्ड ने सहयोग किया। दिन-रात की मेहनत और वाद्ययंत्र बनाने की बारिकी से जुड़े तथ्यों को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया गया है। एक साधारण रावणहत्थे में 7 से 14 तक तार होते हैं लेकिन इसमें 35 तारों को जोड़ा गया है। इसे बनाने में लगभग दो सप्ताह का समय लगा। प्रवीण ने बताया कि पुराने समय से भोपे पाबूजी की फड़ का गायन करते आए हैं। अब पशु पालने वाले परिवारों की संख्या में कमी आने से इस जाति ने भी अन्य व्यवसायों की ओर रुख कर लिया है। इससे आज इस कला के जानकार गिनती के रह गए हैं।
रावणहत्था की कहानी


वाद्ययंत्र की जानकारी रखने वालों ने बताया कि सीताहरण से पूर्व लंकापति रावण ने इसे बनाया था। जब रावण सीता का हरण करने साधु वेश में आया तो उसके पास किसी प्रकार का वाद्ययंत्र नहीं था। जो अकसर साधुओं के पास होता है। ऐसे में रावण ने अपने हाथ से ही इसका निर्माण किया और इससे इसका नाम मिला रावण हत्था।

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