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जोधपुर

इस बार भी किसानों के लिए चुनौती बना ‘सफेद सोना’ उपजाना, जानिए वजह

सफेद सोना कही जाने वाली कपास उगाना किसानों के लिए चुनौती बन गया है। जिले में गत वर्ष कपास की रिकॉर्ड तोड़ बुवाई हुई, लेकिन पैदावार कम होने व भाव कम रहने से किसानों को बुवाई की लागत भी नहीं मिली।

जोधपुरAug 27, 2024 / 05:00 pm

Kamlesh Sharma

ओसियां। सफेद सोना कही जाने वाली कपास उगाना किसानों के लिए चुनौती बन गया है। जिले में गत वर्ष कपास की रिकॉर्ड तोड़ बुवाई हुई, लेकिन पैदावार कम होने व भाव कम रहने से किसानों को बुवाई की लागत भी नहीं मिली। गत वर्ष बुवाई के अनुरूप न तो कपास के भाव रहे और न ही आशानुरूप पैदावार हुई। इस बार भी कुछ ऐसे हालात रहने का अंदेशा है। इस बार अतिवृष्टि ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। अधिकांश क्षेत्रों में कपास की फसल ख़राब हो गई। कहीं बीज उग कर ज़मीन से बाहर ही नहीं निकला तो कहीं खड़ी फसल गलकर नष्ट हो गई।
बीते वर्ष कपास बुवाई का रकबा तो बढ़कर 80 हजार हैक्टेयर से अधिक हो गया था, लेकिन कीट के प्रकोप से कपास की पैदावार बहुत कम रही। दूसरी ओर किसानों को कपास चुनाई में 20 रुपए प्रति किलो तक की मजदूरी की भी लागत चुकानी पड़ी। वहीं 2022 के मुकाबले बाजार भाव भी 30 से 40 प्रतिशत तक कम थे। इससे कपास की फसल किसानों के लिए घाटे सौदा साबित हुई।

बुवाई से ही शुरू हो गया संकट

कपास की फसल को लेकर किसानों के सामने इस सीजन बुवाई के दौरान ही संकट आने लगे थे, जो अभी तक जारी हैं। इस बार मई के दूसरे सप्ताह से शुरू हुई तेज गर्मी व असामान्य तापमान का असर जून के पहले सप्ताह तक रहा। ऐसे में बुवाई में देरी हुई। हाईब्रिड बीज से लेकर कपास रुई की चुनाई तक बढ़ी हुई लागत किसानों को परेशान कर रही है। 1700 रुपए तक प्रति बीघा बीज की लागत आती है। वहीं प्रति किलो 20 रुपए तक चुनाई का खर्च आता है।

रोग-कीट का प्रकोप भी कम नहीं

कपास में रोग व कीट का प्रकोप भी पिछले वर्षों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है। इसके नियंत्रण में प्रति बीघा 5 से 7 हजार का खर्च आ जाता है। इसके अतिरिक्त बुवाई से लेकर खाद, सिंचाई, मजदूरी की लागत को निकालने के लिए कपास की पैदावार को प्रति बीघा 4 क्विंटल बरकरार रखने व बढ़ाने की किसानों के समक्ष चुनौती है।

इन्होंने कहा

फसल लागत को कम करने के लिए सरकार कीट नियंत्रण में किसानों को यांत्रिक विधियां अपनाने पर अनुदान जारी करें व गुणवत्तापूर्ण सस्ता बीज उपलब्ध करवाने सहित मनरेगा के तहत किसानों को कपास के बुवाई रकबे अनुसार मस्टररोल जारी कर रुई चुगाई में सहयोग करवाएं। इससे किसानों को काफी राहत मिल सकती हैं।
तुलछाराम सिंवर प्रदेशमंत्री, भारतीय किसान संघ

यदि यही हालात रहे तो कपास से किसानों को मुंह मोड़ना पड़ेगा। पैदावार कम और खर्चा ज्यादा होने से कपास उगाना किसानों के लिए मुश्किल हो रहा है। पिछले साल कम पैदावार और कम भावों ने परेशान किया और इस बार अत्यधिक बारिश ने अरमानों पर पानी फेर दिया।
महेंद्र कूकना, प्रगतिशील किसान, घेवड़ा

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