क्या आपको पता है कि यहां पुराने समय में मण्डोर के बाग में कई फलदार पौधे लगाए गए थे। यहाँ जामुन, आम और अमरूद प्रसिद्ध रहे हैं। जब कभी बड़ी संख्या में गुलाब, चमेली और मोगरा आदि फू लों की जरूरत होती थी, तब यहीं से फूल लिए जाते थे। रियासतकाल में मण्डोर का बाग बहुत ही सुन्दर और स्वच्छ था। इतिहास के अनुसार पुराने जमाने में मण्डोर एक विस्तृत नगर व मारवाड़ की राजधानी के नाम से विख्यात था। यहां देवताओं की साल महत्वपूर्ण स्थल है। इसे माण्डयपुर, मण्डोवर भौगीशेल आदि नामों से पुकारा जाता रहा है। भौगीशैल परिक्रमा के अवसर पर पदयात्री नाग गंगा के दर्शन के लिए यहां आते हैं व साल में एक बार नागपंचमी पर मण्डोर उद्यान में एक भव्य मेला भी भरता था।
मंडोर का किस्सा भी दिलचस्प है। प्रतिहार (परिहार) शासक राजा बाउक के शिलालेख के अनुसार संवत् 894 यहां पर पहले नागवंशी क्षत्रियों का राज्य हुआ। उसके बाद परमारों और परिहारों का क्रमश: राज्य हुआ। परिहारों में राजा नरभट के बड़े बेटे कुक्कुम (कक्कुत्सय) की तीसरी पीढ़ी में नाहडऱाव परिहार हुआ। ये पृथ्वीराज चौहान तृतीय के समकालीन थे। इनकी सातवी पीढ़ी में इंदा परिहार हुए, जिनके वंशज इन्दा कहलाए। इन्हीं परिहारों से मण्डोर राव चूण्डा राठौड़ ने लिया।
महाराजा अजीतसिंह और महाराजा अभयसिंह के शासनकाल (1714 ई. से लेकर 1749 ई.) में जोधपुर नगर का मण्डोर उद्यान व उसके संलग्न देवी-देवताओं की साल और मण्डोर की पुरानी कलात्मक इमारतें अजीत पोल इक थम्बिया महल, पुराना किला व उसके नीचे वाले मेहलात (वर्तमान म्यूजियम भवन) ऐतिहासिक व कलात्मक देवल, थड़े व छत्रियों, नागादरी के संलग्न कुंओं, तालाबों व बावडिय़ों इत्यादि का निर्माण हुआ। महाराजा जसवन्तसिंह ने इसमें सुधार करवाए और महाराजा सरदारसिंह ने 1896 ई. में मण्डोर गार्डन सुधरवाया। यहां 1896 ई. में मण्डोर स्थित महलों में राजपूत एलगिन स्कूल खोला गया, जो नया भवन बनने के बाद चौपासनी में स्थानांतरित किया गया।
स्वरूपमहाराजा उम्मेदसिंह से लेकर महाराजा हनवन्तसिंह के शासनकाल तक मण्डोर गार्डन में कई सुधार कार्य हुए। वहीं 1923 ई. से 1947-48 ई. के दौरान मण्डोर गार्डन को आधुनिक ढंग से तैयार करवाया गया। आजादी के बाद मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा के समय वित्त मंत्री मथुरादास माथुर के प्रयासों से मण्डोर गार्डन की काया पलट करवाई गई। उद्यान में पानी के हौज, सर्च व फ्लड लाइटें व फव्वारे आदि लगाए गए और मण्डोर में गार्डन के ऊपर ऊंचाई वाले पहाड़ पर हैंगिंग गार्डन भी लगवाया गया। उद्यान के आधुनिक ढंग से विकास के लिए पीडब्ल्यूडी व उद्यान विभाग का भी योगदान सराहनीय रहा। इसकी कायापलट करने में मगराज जैसलमेरिया, सलेराज मुणोहित और दाऊदास शारदा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मण्डोर के जनाना महलों व अजीतपोल के पास पहाड़ी को काटकर बनाई गई 16 मूर्तियों के इस बरामदे को देवी-देवताओं की साल, वीरभवन और वीरविधिका के नाम से पुकारे जाते हैं। ये मूर्तियां महाराजा अजीतसिंह के काल में शुरू होकर महाराजा अभयसिंह के काल में पूर्ण बन कर तैयार हुई। इनका निर्माण काल 1707 ई. से लेकर 1749 ई. तक रहा। इन मूर्तियों में 9 तो देवताओं और 7 वीर पुरुषों की है। जिनमें से कुछ घोड़ों पर सशस्त्र सवार है। ये मूर्तियां कारीगरी की दृष्टि से बहुत खूबसूरत हैं। हर मूर्ति लगभग पन्द्रह फीट ऊंची है और प्रतिमाओं की आंखें निजी विशेषता रखती है। इनमें वीरता व शौर्य दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त वीरों के कपड़ों की सलवटों का प्रदर्शन, चेहरे की बनावट, आभूषण और मूंछें इनकी कुछ अन्य विशेषताएं हैं।
मंडोर बाग में बंदर और लंगूर खूबयह पर्यटन स्थल रामदेवरा मेले के लिए आने वाले जातरुओं की पसंद है। यहां पुरातत्व विभाग का राजकीय संग्रहालय है। यहां हौज, नागादड़ी और पचकुंडा लोगों के तैरने के प्रमुख स्थान बन गए हैं। आज इसके पिछले हिस्से में नागादड़ी कुंड है। आज बाग में बंदर और लंगूर खूब हो गए हैं।
जोधपुर शहर से दूरी : 8 किलोमीटर
मंडोर उद्यान का निर्माण : 1714 ईस्वीं से लेकर 1749 ईस्वीं
मण्डोर गार्डन सुधरा : 1896 ईस्वीं में
आधुनिक रूप : 1923 ई. से 1947-48 ईस्वीं
देवताओं की साल : 9 देवता, 7 वीर पुरुष
इतिहासकार महेंद्रसिंह नगर ने एक बार बताया था कि रियासतकाल में यहाँ पर राज्य की तरफ से नियुक्त पदाधिकारी इसकी
देखभाल किया करते थे। जोधपुर राज्य की ओहदा बही से ज्ञात होता है कि मण्डोर बाग की देखभाल के लिए दरोगा नियुक्त होता था। कोतवाली के चौतरें से भी इसकी देखभाल होती हैं। बही में फौजदार गुलाब खां को इसकी देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि जानकारी रूप से मिलती हैं।