scriptपत्नी के हाथों की मेहंदी सुर्ख थी, लेकिन पुकार रहा था देश, शादी के 15 दिन बाद ही ये वीर मोर्चे पर हो गया तैनात और… | Kargil Vijay Diwas 2019 : Rajasthan Martyr in Kargil War | Patrika News
जोधपुर

पत्नी के हाथों की मेहंदी सुर्ख थी, लेकिन पुकार रहा था देश, शादी के 15 दिन बाद ही ये वीर मोर्चे पर हो गया तैनात और…

Kargil Vijay Diwas 2019 : करगिल शहीद ( Kargil Vijay Diwas ) भंवर सिंह इंदा की वीरांगना इंद्र कंवर का त्याग व जज्बा समाज के लिए मिसाल है। शादी के 15 दिन बाद ही भंवर सिंह करगिल ( Kargil War ) मोर्चे पर तैनात हो गए थे…

जोधपुरJul 23, 2019 / 03:15 pm

dinesh

Rajasthan Martyr
पेपाराम राही / बालेसर / जोधपुर। करगिल शहीद ( Kargil Vijay Diwas ) भंवर सिंह इंदा की वीरांगना इंद्र कंवर का त्याग व जज्बा समाज के लिए मिसाल है। शादी के 15 दिन बाद ही भंवर सिंह करगिल ( Kargil war ) मोर्चे पर तैनात हो गए थे। वीरांगना इंद्र कंवर ने कहा, जब उनके हाथों की मेहंदी सुर्ख थी तब उन्हें देश ने याद किया था। कर्ज चुकाने के बाद जब वे तिरंगे में लौटे, तब मेहंदी का रंग फीका पड़ चुका था। उनकी शहादत ( rajasthan martyr ) को 20 साल बीत गए। वीरांगना ने उनके साथ बिताए पलों के सहारे ये लंबा अरसा गुजारा है। वीरांगना ने बताया कि करगिल में भंवर सिंह 15 दिन तक दुश्मनों से लोहा लेते रहे और 28 जून, 1999 शहीद हो गए। तब उनकी उम्र 22-23 साल थी। बालेसर दुर्गावता गांव की इंद्रकंवर ने कहा, ‘बिछुडऩे का गम तो है, पर गर्व के सामने वह बौना रह जाता है। जब लोग कहते हैं कि देखो यह शहीद की पत्नी है…तो सम्मान महसूस होता है। शादी के बाद उन्होंने जब देशभक्ति के जज्बे को बताया, तो काफी गर्व हुआ कि पति फौज में हैं, जो हमेशा देश के लिए खड़े रहते हैं। अब सिर फख्र से उठ जाता है, जब कोई उनकी शहादत को नमन करता है।‘
सेना की 27 राजपूत राइफल्स के वीर शहीद भंवर सिंह का जिक्रकरते ही बुजुर्ग माता-पिता की भी आखें नम हो जाती हैं। वे कहते हैं कि जिंदगी से वह समय भले ही अब पीछे छूट गया है, लेकिन बेटे को याद कर हम गौरवान्वित महसूस करते हैं। शहीद भंवर सिंह ( Martyr Bhanwar Singh ) के 6 भाई एवं एक बहन हैं।

तब पैकेज मिला, अब भूल गए
शहीद के भाई करण सिंह इंदा ने बताया कि राज्य व केन्द्र सरकार की ओर से शहीद पैकेज मिला था। बाद में राजस्थान पत्रिका की तरफ से 50 हजार रुपए की सहायता राशि मिली। शहीद के नाम बीकानेर में एक मुरब्बा आवंटित हुआ था। उनकी शहादत को नमन करने के कुछ दिन तक तो जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी आते थे, लेकिन धीरे-धीरे भूल गए। अब तो शहीद परिवार के छोटे-बड़े कार्यों पर भी ध्यान नहीं देते हैं।
रोज जूझना पड़ता है अंधेरे से, न पंप मिला न एजेंसी
वर्तमान में वीरांगना जहां रहती हैं, वहां विद्युत कनेक्शन नहीं है। शहीद के नाम से पेट्रोल पंप एवं गैस एजेंसी आवंटन के लिए प्रयास किए थे लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ। थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया। शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है। पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है।

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