विश्व में चैफ टेक्नोलॉजी दो-तीन कम्पनियों के पास ही है। भारत, पाकिस्तान और चीन तीनों ही ग्रेट ब्रिटेन की चैमोरिन कम्पनी से यह टेक्नोलॉजी खरीदते आए हैं। इसमें हर साल वायुसेना के करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं। साथ ही एकाधिकार होने के कारण ये कम्पनियां कई बार बेचती भी नहीं थी। अब भारत इसमें आत्मनिर्भर हो गया है।
दुनिया में 2 से 18 गीगा हट्र्ज के राडार आते हैं। विदेशों से खरीदी चैफ टेक्नोलॉजी हाई फ्रीक्वेंसी राडार को भी धोखा देने का दावा करती है, लेकिन वास्तव में 10 गीगा हट्र्ज के बाद उसकी प्रभाविकता कम हो जाती है। डीआरडीओ जोधपुर में विकसित चैफ 18 गीगा हट्र्स तक काम करता है।
वायुसेना के सुखोई-30 लड़ाकू विमान सबसे बड़े हैं। इनके लिए बड़े कार्टिलेज बनाने पड़ेंगे। डीआरडीओ जोधपुर ने वायुसेना में हाल ही शामिल रफाल लड़ाकू विमानों के ब्लॉक के बारे में भी पूछा है ताकि उनके लिए भी स्पेशल कार्टिलेज बनाए जा सके।
पायलट के लिए वर्चुअल टे्रनिंग
चैफ टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए आधा सैकेण्ड से भी कम का समय मिलता है। ऐसे में पायलट को विशेष प्रशिक्षण की जरुरत पड़ेगी। इसके लिए अब हम वर्चुअल सिस्टम तैयार कर रहे हैं, ताकि सीधे विमान पर जाने से पहले पायलट वर्चुअली प्रशिक्षित हो जाए।
-डॉ. रवींद्र कुमार, निदेशक, डीआरडीओ जोधपुर