इसके बाद स्वामी विवेकानंद मई 1897 ई. में जब दूसरी बार अल्मोड़ा आए तब अल्मोड़ा की जनता ने अतुल्य उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। अल्मोड़ा बाजार में स्थित रघुनाथ मंदिर के चबुतरे पर खड़े होकर पांच हजार के विशाल जनसमूह को संबोधित किया। इस भीड़ में एक चेहरा ऐसा भी था जिसे स्वामी विवेकानंद ने देखते ही पहचान लिया। यह वही जुल्फिकार थे, जिन्होंने 7 वर्ष पहले कब्रिस्तान में स्वामीजी की जान बचाई थी। विशाल जनसमूह में स्वामीजी ने उन्हें पहचान लिया और गदगद ह्रदय से गले लगाकर उनका आभार व्यक्त किया और मंच से कहा कि इस व्यक्ति ने मेरे प्राणों की रक्षा की थी।
स्वामी विवेकानंद तीसरी और अंतिम बार 1898 ई. में 9 शिष्यों के साथ अल्मोड़ा आए।
-खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने ही विवेकानंद को पगड़ी व राजस्थानी अंगरखा भेंट किया, जो उनकी खास पहचान बन गए।
-विवेकानंद नाम भी खेतड़ी की ही देन है।
-वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामी खेतड़ी तीन बार आए।
स्वामी विवेकानंद
जन्म 12 जनवरी 1863
निधन 4 जुलाई 1902