शरीर को देती शीतलता बाजरे की राबड़ी गर्मियों का शीतल पेय बन रही है। बिसाऊ क्षेत्र में तो इसे अधिक पसंद किया जा रहा है। बुजुर्ग तो इसे और अधिक चाव से खाते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि यह शरीर में शीतलता पहुंचाती है। यह बाजरे के आटे से तैयार हो जाती है और सस्ती भी पड़ती है।
रोटी के साथ राबड़ी गांव भामु की ढाणी के बीरबल सिंह को कहना है कि बुजुर्ग एक मटकी में छाछ, बाजरे का आटा, प्याज आदि के मेल से राबड़ी तैयार करके रखते थे और सुबह होने पर रोटी के साथ छाछ में बनी राबड़ी का ही उपभोग करते थे। घर में अगर कोई मेहमान आता था तो उसे भी रोटी और राबड़ी ही दी जाती थी। बाजरे की रोटी और राबड़ी का अच्छा संगम होता था जो सेहत की दृष्टि से भी लाभप्रद होती है।
अब होने लगी बिक्री भी ग्रामीण परिवेश में तो राबड़ी मुफ्त में मिलती है। लेकिन अब इसको बनाने में प्रयोग होने वाली सामग्री महंगी होती जा रही है। ऐसे में आजकल डेयरी बूथ पर राबड़ी दस से बीस रुपए प्रति गिलास बिक भी रही है।
राबड़ी बनाने का सामान
राबड़ी के निर्माण में बाजरे की घाट, नमक, छाछ, प्याज आदि की जरूरत होती है। राबड़ी बनाने के लिए ज्यादा बेहतर बाजरे का आटा है। किंतु आजकल जौ व गेंहु के आटे से भी लोग राबड़ी बनाने लगे हैं। क्योंकि जौ का आटा बहुत कम मिलता है। गांव की धापा ताई के अनुसार राबड़ी बनाने के लिए हांडी (मिट्टी से बना छोटी मटकी) की जरूरत होती है। हांडी में बाजरे का आटा छाछ में घोलकर धीमी आंच पर पकाते हैं। इसके अंदर बाजरा के कुछ दाने डाल देते हैं तो कुछ लोग चने की दाल भी डाल देते हैं। लंबे समय तक आंच पर पकने के बाद इसे आग से उतारकर रख देते हैं।
-डॉ. वेदप्रकाश शर्मा