परहित की बात को सर्वोपरि रखते थे पं.दीनदयाल उपाध्याय इस अवसर पर राज्यमंत्री हरगोविंद कुशवाहा ने रामचरित मानस की चौपाई का उद्धरण देते हुए कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय परहित की बात को सर्वोपरि रखते थे। उनका जीवन राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत था। वे भारतीयता के के सच्चे प्रतिनिधि थे। उन्होंने कहा कि श्री उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सिद्धान्त के अनुसार समाज का भला तभी हो सकता है जब विकास हमारे समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंच सके, तभी देश का तथा समाज का विकास हो पायेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रो.वी.के.सहगल ने कहा कि देश में आज के दौर में बहुत सी सामाजिक एवं आर्थिक विषमताएं उत्पन्न हो गई हैं। यदि हम पं. दीनदयाल उपाध्याय के बताए हुए मार्ग पर चलें तो हमें इन विषमताओं से आसानी से मुक्ति मिल सकती है और सही मायने में देश का विकास किया जा सकता है।
अद्भुत प्रतिभा के धनी थे पं.दीनदयाल उपाध्याय इस अवसर पर वित्त अधिकारी धर्मपाल ने कहा कि पं.दीनदयाल उपाध्याय अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का उललेख करते हुए कहा कि नैतिकता के सिद्धांतों को कोई एक व्यक्ति नहीं बनाता है, बल्कि इनकी खोज की जाती है। भारत में नैतिकता के सिद्धांतों को धर्म के रूप में माना जाता है। वित्त अधिकारी ने कहा कि पं.दीनदयाल उपाध्याय सदैव अपनी पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से देश के विकास के लिए कार्यरत रहे।
लिखने का था शौक अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. देवेश निगम ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय को लिखने का बहुत शौक था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक बैठक में ही चन्द्रगुप्त नाटक को पूरा लिख लिया था। इसके साथ ही साथ पं. उपाध्याय निरन्तर समाज को दिशा देने के लिए समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के लेख लिखा करते थे। आज के समय में भी उनके लेख बहुत ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि दीनदयाल के विचारों में अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है।
स्वदेशी को अपनाने की करते थे बात संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. सी. बी. सिंह ने कहा कि भारत विविधताओं वाला देश है। पं. दीनदयाल उपाध्याय स्वदेशी को अपनाने की बात करते थे। उनकी किताब एकात्म मानववाद से उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जो दवा इंग्लैण्ड में काम कर सकती है वह जरूरी नहीं कि हमारे देश में भी कारगर हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी तकनीकी स्वयं विकसित करें। इससे न केवल हमारे देश के नागरिकों को रोजगार प्राप्त होगा बल्कि देश की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। बिना आत्म निर्भरता के कोई भी देश संप्रभु राष्ट्र नहीं हो सकता है। आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करते हुए हिन्दी विभाग के अध्यक्ष एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के निदेशक डा. मुन्ना तिवारी ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। डा. तिवारी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक महान चिंतक थे। वे संगठन में विश्वास रखते थे। वे भारत को सिर्फ जमीन का टुकड़ा ही बल्कि जीता जागता एक महान राष्ट्र मानते थे। युगों युगों से स्थापित भारतीय संस्कृति और सनातन विचारधारा को देश के लिए प्रगतिशील बताया और अपने इसी सिद्धांत के जरिये एकात्म मानववाद विचारधारा प्रस्तुत की।
विजेताओं को किया पुरस्कृत इस अवसर पर ललितकला संस्थान में पं.दीनदयाल की पुण्यतिथि पर आयोजित चित्रकला प्रतियेागिता के विजेताओं को पुरस्कार भी वितरित किये गये। इस प्रतियोगिता में ललित प्रजापति प्रथम, स्नेहा झा द्वितीय तथा मनीषा राव तृतीय स्थान पर रहीं। इसके साथ ही सांत्वना पुरस्कार महाविश सिद्दकी और कीर्ति कुशवाहा को दिया गया। अतिथियों का आभार हिन्दी विभाग की सहायक आचार्य डाॅ. अचला पाण्डेय ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डा. मुहम्मद नईम, डा. श्वेता पाण्डेय, डा. उमेश कुमार, डा. अमित तिवारी, जयराम कुटार, एवं विभिन्न संस्थानों के शिक्षक, शिक्षिकाएं और विद्यार्थी उपस्थित रहे।