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झाबुआ

सब्जी बेचते बड़ी बहन से सीखा राजनीति का ‘ककहरा’, प्रतिद्वंदी बनकर पहले ही चुनाव में दी शिकस्त

MP Election 2023 : झाबुआ की राजनीति के इतिहास में एक अनोखा किस्सा दर्ज है जब विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला दो बहनों के बीच हुआ था। छोटी बहन कांग्रेस से चुनाव लड़ी तो बड़ी बहन भाजपा की टिकट से मैदान में उतरी। इस चुनाव में जीत छोटी बहन की हुई। ये चुनाव सर्वाधिक चर्चित रहा था।

झाबुआOct 14, 2023 / 01:37 pm

Sanjana Kumar

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mp election 2023 : सचिन बैरागी, झाबुआ। शहर की पूर्व विधायक 74 वर्षीय स्वरूपबेन भाबर ने अपनी बड़ी बहन और चार बार की विधायक रही गंगाबाई से राजनीति का ककहरा सीखा। उन्हें पता नहीं था कि एक समय ऐसा आएगा जब उन्हें अपनी बहन के सामने ही चुनाव लडऩा पड़ेगा। 1998 के चुनाव में झाबुआ विधानसभा से स्वरूपबेन कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरी तो उनके सामने भाजपा उम्मीदवार के रूप में उनकी बड़ी बहन गंगाबाई थी। इस चुनाव में स्वरूप बेन ने अपनी बड़ी बहन गंगाबाई को 19 हजार 634 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। स्वरूपबेन को 36 हजार 326 मत मिले, जबकि गंगाबाई को 16 हजार 692 मत प्राप्त हुए। इस तरह बड़ी बहन को हराकर पहली बार स्वरूपबेन झाबुआ से विधायक निर्वाचित हुई।

 

मतदाता पर्ची तैयार करती थी स्वरूपबेन

पूर्व विधायक स्वरूपबेन खेती-किसानी करती थी और शहर के पॉवर हाउस रोड पर सब्जी की दुकान लगाया करती थी। स्वरूपबेन बताती हैं, जब उनकी बड़ी बहन गंगाबाई चुनाव लड़ती थी तो वे उनके साथ न केवल प्रचार में जाती थी, बल्कि मतदाता पर्ची तैयार करने का काम भी करती थी। यहीं से उनमें राजनीति के गुर विकसित होते चले गए। धीरे-धीरे राजनीति की तरफ रुझान बढ़ा। उन्होंने अपने शुरुआती राजनीतिक जीवन में वार्ड क्रमांक-16 से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पार्षद चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की। पार्टी मीटिंग में भी वे सक्रिय रहती थी। लिहाजा 1998 में कांग्रेस ने उन्हें झाबुआ विधानसभा से चुनाव मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में जीत मिली, लेकिन 2003 के चुनाव में उन्हें पराजय झेलनी पड़ी। इसके बाद भी वे संगठन स्तर पर सक्रिय थी, लेकिन अब स्वास्थ्यगत कारणों के चलते ज्यादातर समय अपने घर पर ही गुजारती हैं।

2.5 लाख के खर्च में पूरा चुनाव लड़ लिया था

स्वरूपबेन कहती हैं कि जिस वक्त वे चुनाव लड़ी थी उस वक्त प्रचार में कोई बड़ी रकम खर्च नहीं होती थी। झंडे और पोस्टर तो पार्टी कार्यालय से ही मिल जाते थें। तड़वी और कोटवार को नाश्ते-पानी के खर्चे के रूप में 5-10 रुपए दे देते थे। इसके अलावा जीप का किराया लगता था। पूरे चुनाव में 2.5 लाख रुपए खर्च किए थे। इसमें मतदान केंद्र पर बैठने वाले कार्यकर्ता से लेकर तमाम सारे खर्च आ गए।

मंत्री ने गाड़ी खरीदने दिया था एक लाख का चेक

स्वरूपबेन की सहजता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि विधायक निर्वाचित होने के बाद भी वे किराए की गाड़ी से ही मतदाताओं के बीच उनके काम करवाने के लिए जाती थी। उस वक्त 50 रुपए किराए में गाड़ी मिल जाती थी और 20 रुपए ड्राइवर को देती थी। डीजल खुद ही भरवाती थी। जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इसका पता चला तो उन्होंने सवाल किया कि तुमने अब तक गाड़ी नहीं ली। इसके बाद तत्कालीन गृह एवं परिवहन मंत्री हरवंशसिंह ने न केवल स्वरूपबेन को एक लाख रुपए का चेक दिया, बल्कि गाड़ी की पूरी किस्त भी उन्होंने ही जमा की।

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