सायला क्षेत्र में ज्यादातर लाल एवं सफेद किस्म की किनोवा की खेती होती है। बावतरा गांव के करीबन 50 से अधिक किसान किनोवा की खेती कर रहे हैं। बावतरा में किनोवा के कच्चे अनाज को प्रोसेसिंग कर खाने योग्य बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट भी स्थापित की गई है, जिससे
राजस्थान सहित पूरे भारत में एवं विदेशों तक निर्यात किया जा रहा है। बावतरा के किसान पुत्र प्रेमसिंह राजपुरोहित एवं रमेशसिंह राजपुरोहित ने बताया दक्षिण भारत के हैदराबाद में व्यवसाय कर रहे थे।
उस दौरान 2009-10 में वहा किनोवा की अच्छी खेती हुई थी एवं 2012 में एक जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली कम्पनी का बावतरा में कार्यक्रम हुआ था। ऐसे में वहां से जानकारी लेकर किनोवा की खेती शुरू की। 2014 में प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया था। अब बावतरा में करीबन 70 किसान किनोवा की खेती करते है एवं इन्हें बेचते है। उन्होंने बताया कि
जालोर जिले सहित पूरे राजस्थान एवं अन्य राज्यों से भी कच्चा माल यहां आता है। उसको प्रोसेस कर विदेशों में निर्यात करते हैं।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार भाव 50 हजार से एक लाख
किनोवा का अंतरराष्ट्रीय बाजार भाव 50 हजार से एक लाख रुपए प्रति क्विंटल तक है। ऐसे में यह फसल किसानों के लिए कम खर्च में अधिक मुनाफे वाली फसल साबित हो सकती है। किनोवा की फसल उष्ण कटिबंधीय जलवायु में पैदा होती है। वैसे तो किनोवा की कई किस्में हैं, लेकिन सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली और उपलब्ध तीन किस्में हैं जो सफेद किनोवा, लाल किनोवा, काला किनोवा होती है। बाजार में इन तीनों का दाम अलग अलग है। इन तीनों किस्मों के अलावा, एक तिरंगा किस्म भी है, जो इन तीनों का मिश्रण होता है। किनोवा की अलग-अलग किस्मों में पोषक तत्वों की मात्रा भी अलग-अलग होती है। किनोवा में विटामिन ई, विटामिन बी 3 और कैल्शियम भी पाया जाता है। अमेरिका व अन्य देशों में किनोवा को लोग भोजन के रूप में काम लेते हैं। वहां के लोग किनोवा की खिचङ़ी चाव से खाते हैं। किनोवा में आयरन, विटामिन सहित कई पोषक तत्व होने से इसका उपयोग दवा बनाने में भी होता है।
दक्षिण अफ्रीका की पैदावार
किनोवा मुख्य तौर पर दक्षिण अफ्रीकी देशों में होता है। इसके पोषण महत्व को देखते हुए प्रदेश के चित्तौड़गढ़, उदयपुर, टोंक, जालोर, पाली और जोधपुर आदि जिलों में इसकी खेती की जा रही है। राज्य सरकार के प्रयासों से प्रदेश में किसानों ने किनोवा की खेती तो शुरू कर दी थी। लेकिन उन्हें अपनी फसल के लिये उपयुक्त मार्केट नहीं मिल पा रहा था। अब जालोर के बावतरा में प्रोसेसिंग प्लांट लगने से यह समस्या काफी हद तक हल हो चुकी है।