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जैसलमेर

बर्फीली रात में दहका जवानों का शौर्य, ’71 लोंगेवाला साबित हुआ दुश्मन के लिए ‘वाटरलू’

भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1971 के अंतिम दिसम्बर माह में पूर्वी बंगाल और बाद में नए देश बांग्लादेश के मसले पर आमने-सामने के युद्ध में 16 दिसम्बर का दिन भारत के इतिहास का गौरवशाली दिन है।

जैसलमेरDec 15, 2024 / 08:24 pm

Deepak Vyas

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भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1971 के अंतिम दिसम्बर माह में पूर्वी बंगाल और बाद में नए देश बांग्लादेश के मसले पर आमने-सामने के युद्ध में 16 दिसम्बर का दिन भारत के इतिहास का गौरवशाली दिन है। जब ढाका में पाकिस्तान की सेना ने लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीतसिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और इस तरह से भारत ने ऐतिहासिक विजय हासिल की। उस युद्ध के अध्याय में जैसलमेर के लोंगेवाला में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 4 से 7 दिसम्बर के बीच लड़े गए युद्ध का ऐतिहासिक महत्व है। जब पाकिस्तान की पूरी टैंक ब्रिगेड व सैकड़ों जवानों को भारतीय सेना के केवल 120 जवानों की टुकड़ी ने न केवल पूरी रात रोके रखा बल्कि अगले दिन सुबह भारतीय वायुसेना के हंटर मारुत विमानों ने उन पर विनाशकारी बम वर्षा कर 36 टैंकों का लौंगेवाला के रेगिस्तान में एक तरह से कब्रिस्तान ही बना दिया। एक तरह से पाकिस्तान सेना के लिए लोंगेवाला का युद्ध नेपोलियन बोनापार्ट की सेना वाला वाटरलू साबित हुआ। गौरतलब है कि वाटरलू का युद्ध 18 जून 1815 में लड़ा गया था। फ्रांस के शासक नेपोलियन का यह अन्तिम युद्ध था, जिसमें एक तरफ फ्रांस था तो दूसरी तरफ ब्रिटेन, रूस, प्रशा, आस्ट्रिया, हंगरी की सेना थी। युद्ध में हारने के बाद नेपोलियन ने आत्मसमर्पण कर दिया था और मित्र राष्ट्रों ने उसे बंदी बना लिया।

सैन्य इतिहास का अमिट अध्याय

रात के समय में लोंगेवाला में बर्फ जैसी ठंडी हवाओं में भारतीय थल सेना के 120 जवानों ने अपने पराक्रम का दहकता हुआ नमूना पेश किया। सूर्य की पहली किरण के साथ भारतीय वायुसेना ने जिस अंदाज में दुश्मन के टैंकों को मटियामेट किया, वह तो भारतीय सैन्य इतिहास का अमिट अध्याय बन चुका है। सरहदी जैसलमेर जिले में इस ऐतिहासिक जीत के कई सजीव प्रमाण मौजूद हैं। लोंगेवाला जहां युद्ध लड़ा गया, वहां बाकायदा एक वार म्यूजियम बन चुका है। जहां पाकिस्तान से जीते टैंकों सहित उसके वाहनों व अन्य दस्तावेजों-चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। ऐसे ही जोधपुर मार्ग पर जैसलमेर मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर सैन्य क्षेत्र में स्थापित वार म्यूजियम में भी इस युद्ध की यादों को संजोया गया है। हर वर्ष जैसलमेर में 16 दिसम्बर को विजय दिवस का धूमधाम से आयोजन किया जाता है। जिसमें जीत के नायक मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को शिद्दत से याद किया जाता है। कुछ दशक पहले इस युद्ध पर केंद्रित बॉर्डर फिल्म के बाद कुलदीप सिंह सहित अन्य युद्ध नायक जन-जन की स्मृतियों में स्थान बना चुके हैं। हालांकि कुछ साल पहले कुलदीप सिंह का निधन हो गया लेकिन उनकी शौर्य गाथा आज भी फिजाओं में गूंज रही है।

इसलिए खास है लोंगेवाला युद्ध

  • 4 से 5 दिसंबर, 1971 की रात को पाकिस्तानी सेना ने लोंगेवाला सीमा चौकी पर हमला किया था।
  • इस हमले में पाकिस्तान की ओर से 4,000 सैनिक, टी-59 और शेरमैन टैंक, और एक मध्यम तोपखाना बैटरी शामिल थी।
  • इस युद्ध में भारत के 2 जवान शहीद हुए थे, जबकि पाकिस्तान को अपने 200 सैनिकों की जान गंवानी पड़ी थी।
  • लोंगेवाला युद्ध में भारत की जीत में भारतीय वायुसेना ने भी अहम भूमिका निभाई थी। विंग कमांडर एमएस या ‘एंडी’ बावा के नेतृत्व में भारतीय वायुसेना ने 18 उड़ानों में 36 दुश्मन टैंकों, 100 वाहनों को नष्ट किया और अनेक पाकिस्तानी सैनिक मारे गए।

संग्रहालय में हंटर मारुत विमान

1971 के युद्ध में पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बनाने वाला भारतीय वायुसेना का हंटर मारुत लड़ाकू विमान मौजूदा समय में जैसलमेर के राजकीय संग्रहालय में रखा है और एक तरह से अनदेखेपन का दंश भोग रहा है। कई वर्षों पहले वायुसेना ने जिला प्रशासन को इस ऐतिहासिक धरोहर को संजो कर रखने के लिए सौंपा था। शुरुआत में इसे हनुमान चौराहा पर पत्थर की चारदीवारी के बीच रखा गया, कुछ साल बाद चौराहा का विस्तारीकरण करने के लिए इसे यहां से हटाकर राजकीय संग्रहालय में लाकर रखवाया गया। तब से यह विमान वहीं है।

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