script‘हिन्दी हो या तेलुगू, फिल्मकारों को लगातार बेहतर करना जरूरी’ | Special conversation with film director Neeraj Pandey | Patrika News
जैसलमेर

‘हिन्दी हो या तेलुगू, फिल्मकारों को लगातार बेहतर करना जरूरी’

– मशहूर फिल्म निर्देशक नीरज पांडे ने राजस्थान पत्रिका से खास बातचीत में बांटे अनुभव- बंदों में था दम डॉक्यूमेंट्री फिल्म को लेकर उत्साहित, आज होगी रिलीज

जैसलमेरJun 15, 2022 / 08:26 pm

Deepak Vyas

‘हिन्दी हो या तेलुगू, फिल्मकारों को लगातार बेहतर करना जरूरी’

‘हिन्दी हो या तेलुगू, फिल्मकारों को लगातार बेहतर करना जरूरी’

दीपक व्यास
जैसलमेर. अ वेड्नस-डे, स्पेशल २६, बेबी और एम एस धोनी जैसी फिल्मों के निर्देशन से बॉलीवुड में ख्याति अर्जित कर चुके मशहूर फिल्म निर्देशक, लेखक व निर्माता नीरज पांडे अपनी अगली डॉक्यूमेंट्री फिल्म बंदों में था दम को लेकर काफी उत्साहित है। पांडे ने राजस्थान पत्रिका को फोन कर अपने अनुभव बांटे और सवालों के जवाब दिए। बॉलीवुड व साउथ की फिल्मों के बीच चल रही तुलना के सवाल पर उन्होंने कहा कि
फिल्म हिन्दी हो या साउथ भाषा की, मुकाबले जैसी कोई बात नहीं है। यह केवल मीडिया में की जा रही बातें है। यदि आप इतिहास उठाकर देखें तो हमेशा एक ट्रेंड रहता है, लेकिन उसका समय भी होता है रुखसत होने का…। उसके बाद नई चीज आती है। उन्होंने कहा साउथ की फिल्में वर्क करती भी है और हिन्दी फिल्में भी। भूल-भूलैया -२ ने अच्छा कार्य किया है। हमें बेहतर करना है, इसमें दो-राय नहीं है। कहानियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आज ही ध्यान देना चाहिए, हमेशा देने की जरूरत है। डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘बंदों में था दम’ को लेकर उन्होंने कहा कि फिल्म की कहानी में यह बताया गया है कि जो असंभव था, वह संभव हो गया। भारत-आस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज में भारतीय टीम ३६ पर सिमट गई। वहां से आकर हमारी टीम ४ टेस्ट मैच की सीरीज जीती है, जबकि कई टॉप क्लास खिलाड़ी घायल होते जा रहे थे, लेकिन आखिरी टेस्ट तक आते आते टीम के बैंच बोलर टीम का हिस्सा बने और जीत भी दिलाई। यह असंभव होने जैसी कहानी है। यह कहानी केवल क्रिकेट प्रेमियों के लिए नहीं, बल्कि प्रोत्साहित व प्रेरित करने वाली कहानियां पसंद करने वाले दर्शकों को भी काफी पसंद आएगी। इस फिल्म में क्रिकेट की कहानियां भारतीय व आस्ट्रेलियन क्रिकेटर्स, खेल विशेषज्ञ…. सबका नजरिया उन चार टेस्ट मैचों को लेकर दिखाया गया। उनके पॉइन्ट ऑफ व्यू से की मूवमेंट को हाइलाइट करने की हम कहानी कह रहे हैं। उन्होंने ‘बंदों में था दम’ की तुलना ८३ से करने से इनकार करते हुए कहा कि वह फिचर फिल्म है और यह डॉक्यूमेेंट्री फिल्म है। दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। अपने श्रेष्ठ कार्य के बारे में पूछने पर कहा कि मेरा बेस्ट वर्क आना अभी शेष है।

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