भाजपा और कांग्रेस ने चुने मनमर्जी के अफसर भाजपा सरकार ने जुलाई 2017 में गल्होत्रा को डीजीपी बनाया। उस समय गल्होत्रा वरिष्ठता में चौथे स्थान पर थे। सबसे वरिष्ठ कपिल गर्ग को भी नजरअंदाज किया गया। सत्ता में लौटते ही कांग्रेस सरकार ने 21 दिसम्बर 2018 को ओपी गल्होत्रा को बदलकर कपिल गर्ग को डीजी की जिम्मेदारी सौंप दी। गर्ग की नियुक्ति के समय सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू हो चुका था, लेकिन राज्य सरकार ने न तो अधिकारियों का कोई पैनल तैयार किया और न ही आयोग की भूमिका को मंजूर किया।
दो साल पहले दिए थे कोर्ट ने आदेश सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो वर्ष पहले आदेश दिए कि किसी भी राज्य में डीजीपी को नियुक्त करने से पहले राज्य सरकार 7 अधिकारियों का पैनल बनाकर यूपीएससी को भेजेगी। आयोग उनमें से अंतिम रूप से योग्य तीन अधिकारियों का पैनल सरकार को पुन: भेजेगा। राज्य सरकार उनमें से अपनी पसंद के किसी एक अफसर को डीजीपी बनाने के लिए स्वतंत्र होगी।
रेड्डी, त्रिपाठी, यादव, दासोत व लाठर में दौड़ गर्ग की सेवानिवृत्ति के बाद वरिष्ठता सूची में सबसे ऊपर 1985 बैच के अधिकारी ओपी गल्होत्रा ही रहेंगे, हालांकि वर्तमान सरकार ने आते ही उन्हें डीजीपी पद से हटा दिया था। गल्होत्रा अक्टूबर में ही रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद नम्बर सबसे वरिष्ठ एनआरके रेड्डी का है, जो अभी डीजी जेल हैं। सात में से 1987 बैच के अधिकारी अक्षय कुमार मिश्रा पहले ही लम्बे समय से केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं। फिलहाल उनके प्रतिनियुक्ति से लौटने की सम्भावना कम है। इस स्थिति में पुलिस महानिदेशक की दौड़ में प्रमुख रूप से एनआरके रेड्डी, आलोक त्रिपाठी, भूपेन्द्र यादव, राजीव दासोत और एमएल लाठर हैं।