मरीजों की लंबी कतार देखकर मुख्य सचिव ने जिम्मेदार अधिकारियों को कतारें और वेटिंग कम करने सहित ऑनलाइन-टोकन सिस्टम मजबूत करने की नसीहत दी। आउटडोर शुरू होने के 15 मिनट बाद ही मुख्य सचिव के पहुंचने से अस्पताल में खलबली मच गई। सीएस ने आउटडोर में लंबी कतारें देखकर अधिकारियों को कहा कि आप तकनीक का उपयोग क्यों नहीं करते ? डिजिटल डिस्प्ले, स्कैन एंड शेयर, टोकन व्यवस्था क्यों नहीं बनाते ? इससे वही मरीज डॉक्टर के चैंबर में पहुंचे जिसका नंबर हो। उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पताल में भीड़ रहना स्वाभाविक है, लेकिन हम मरीज को कतार में परेशान होता नहीं देख सकते। इससे निजात दिलाने का जिम्मा अस्पताल प्रबंधन का ही है। पंत ने यहां कुछ शौचालय देखे, जो गंदगी से अटे थे। उन्होंने कहा कि अस्पताल जैसी जगह पर गंदगी होना मरीज और अस्पताल के हित में नहीं है। उन्होंने सफाई की बेहतर व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए। पंत ने कहा कि आउटडोर और इनडोर मरीज अच्छा अनुभव लेकर जाएं, इसके लिए योजना बनानी चाहिए। राजस्थान पत्रिका अस्पताल में लंबी कतारों और ऑनलाइन सिस्टम की खामियों को लेकर लगातार समाचार अभियान चला रहा है।
सीएस पंत ने वार्डों में मरीजों से बात की तो उनका कहना था कि उपचार सही मिल रहा है। आउटडोर में भी कतारों में लगे मरीजों से बात की तो मरीजों ने कहा कि कतार बहुत लंबी है, नंबर कैसे आएगा ? पंत ने अधिकारियों को कहा कि सुधार हमेशा होते रहना चाहिए। गंभीर मरीजों को भी पैदल आते देखकर उन्होंने कहा कि वार्ड ब्वॉय और व्हील चेयर की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
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मुख्य सचिव ने जहां एसएमएस के जिम्मेदार अधिकारियों को कतारें कम कर मरीजों का दर्द कम करने की नसीहत दी वहीं इसके कुछ घंटों बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर और चिकित्सा शिक्षा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों का संतुष्टि स्तर बढ़ने का दावा कर दिया। मंत्री और एसीएस ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि प्रदेश में 5 सप्ताह के दौरान किए गए 7600 निरीक्षणों से सरकारी अस्पतालों की ओपीडी और आइपीडी सेवाओं में मरीजों की संतुष्टि दर 75 प्रतिशत से बढ़कर 92 प्रतिशत हो गई है। विभाग ने यह आकलन अस्पताल भवन, लेबर रूम, वार्ड में बैडशीट, इमरजेंसी सेवा, संविदा कार्मिकों के मानदेय की स्थिति, नि:शुल्क दवा और जांच योजना के संचालन, बायोमैट्रिक उपस्थिति, साफ-सफाई को लेकर किया गया है। हैरत की बात यह है कि अस्पताल पहुंचने के बाद मरीजों को सर्वाधिक परेशानी देने वाली कतारों, रेफरेंस सुविधा और ऑनलाइन सिस्टम की खामियों को लेकर कोई आकलन विभाग ने नहीं किया।