जहां किसान की भलाई हो, वहीं मेरा मन लगता है। किसानों के नाम पर छलावा करने वालों के साथ मैं नहीं रहता। भाजपा की पिछली सरकार में किसानों के हितों में कई काम करवाए। विद्युत कनेक्शन नीति में तब अच्छे बदलाव आए थे। लेकिन इस बार किसानों के साथ किए वादे पूरे नहीं किए। इसीलिए पांच साल से अपनी ही पार्टी से अलग खड़ा था।
ऐसे सवाल पैदा होना स्वाभाविक है, मुझे तो ऑफर भी था। मुझे पद का लालच दिया। पांच साल तक किसान आयोग का पद मेरे लिए खाली रखा था। मगर आयोग का हश्र मुझे पता था। जब तक किसी आयोग को वैधानिक दर्जा न दिया जाए, कोई अर्थ नही था। मैंने ड्राफ्ट दिया लेकिन किसान आयोग पर काम नहीं हुआ।
हमारी लड़ाई सत्ता में आने के बाद शुरू हुई। सरकार में आने के बाद किसानों से किए वादे अधूरे रहे, जबकि मैं नेताओं से पूछ कर ही लोगों को आश्वासन देता था। मैंने सरकार को वादा याद दिलाया पर मेरी बात नहीं सुनी। फिर आंदोलन, जेल जो कुछ हुआ वो सबके सामने है। जब अपनी ही पार्टी की सरकार में जेल चले गए, तो फिर पार्टी से क्या रिश्ता रखता।
आप कह रहे हैं संघर्ष करेंगे? योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास के उदाहरण हैं, क्या ‘आप’ पार्टी के भीतर रहकर लडऩा आसान है? देखिए, मैं मेरी शर्तों पर आम आदमी पार्टी में हूं, किसी की कृपा पर न था और न रहूंगा। मैं राजनीति में किसानों का राजदूत हूं। जब तक किसानों की बात चलेगी,पार्टी में चलूंगा।
आप पार्टी की सरकार अनटैस्टेड है। किसानों के मुद्दे पर इस लड़ाई में साथ रहने का वादा किया है। ये बात सही है कि दो दलीय राजनीति में समर्थन जुटाना बड़ी चुनौती है। लेकिन मैं राजस्थान के गांवों में घूमा हूं। जनता विकल्प चाहती है। अच्छी छवि का जो साथ आना चाहेगा उसे जोड़ेंगे।
क्या बेनीवाल, तिवाड़ी या बसपा के साथ ‘आप’ पार्टी समझौता करेगी?
हम राज्य में सशक्त विकल्प के लिए गंभीर हैं। अपने-अपने मुद्दों पर रहें और तालमेल बनाकर लड़े। हमारा नारा है कि वो जाति धर्म से तोड़ेंगे, हम मूंग-उड़द से जोड़ेंगे।
भाजपा से जो भी अलग हुआ वह अपना बड़ा वजूद नहीं बना पाया, कुछ पार्टी में लौट आए है। आप भाजपा से नाराज है या नेताओं से?
देखिए, मैं तो सिस्टम से नाराज हूं। लगातार संघर्ष करने वाला हूं। यदि कलम हाथ में आई तो कानून बनेगा, कलम हाथ में नहीं आई तो सदन और सड़क पर संघर्ष अनवरत चलता रहेगा, भाजपा में लौटने का सवाल ही नहीं है।
वैकल्पिक राजनीति की बात करती थी ‘आप’, व्याधियां तो वहां भी हैं?
कोई भी व्यक्ति जब भी कोई काम शुरू करता है तो ये स्वाभाविक है कि उसका अनुभव कम होता है। काम करते-करते समय के साथ परिपक्वता आती रहती है।
किसानों का भला करने की मांग, किसानों के जरिए चुनावी राजनीति? सब यही कर रहे हैं, आप भी यही कर रहे हैं?
मैंने 200 विधानसभा सीटों के विधायकों को देखा है। 200 में से 182 विधायकों ने अपना पेशा कृषि बताया है। आप बताओ जिस सदन में 91 फीसदी किसान हों, फिर भी उपज के दाम न मिलें। ऐसा कैसे हो सकता है?
‘आप’ से क्या करार हुआ, कितनी टिकट मांगी?
करार नहीं सहमति की बात कही है। ग्रुप डिस्कशन का कल्चर होना चाहिए। प्रत्याशियों का चयन फाइव स्टार होटल्स में नहीं, किसानों की चौपालों पर होना चाहिए।