ऐसे में महंगे कोयले पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। जबकि, पहले राज्य विद्युत उत्पादन निगम और कॉर्पोरेशन के बीच हुए ज्वाइंट वेंचर में एक ही यूनिट लगाना तय था। पावर प्लांट की निर्माण लागत करीब 3 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है। ज्वाइंट वेंचर में कॉर्पोरेशन की 74 प्रतिशत और उत्पादन निगम की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
सस्ते उत्पादन का यह कारण
राजस्थान में ही लिग्नाइट की खदान है, इससे करीब 2 हजार रुपए प्रति टन परिवहन लागत बचेगी। जबकि, अभी पावर प्लांट के लिए कोयला छत्तीसगढ़, ओडिशा से मंगाया जा रहा है। इसके लिए मोटी परिवहन लागत वहन करनी पड़ रही है। यही कारण है कि थर्मल पावर प्लांट के अनुपात में लिग्नाइट आधारित प्लांट से बिजली उत्पादन 90 पैसे से एक रुपए प्रति यूनिट सस्ता होगा। बाड़मेर में ही जलीपा कपूरडी माइन्स में लिग्नाइट का भंडार है।
संकट में आंख दिखाई, निपटने के लिए जरूरी
ज्यादातर दिन करीब 2500 मेगावाट का शॉर्टफॉल रहता है। सोलर व विंड एनर्जी कम होने पर यह कमी और बढ़ जाती है। इससे बिजली कटौती के हालात बनते रहे हैं। संकट के दौरान ही कुछ निजी उत्पादन कंपनियों ने भी आंख दिखाई। यहां तक कि प्लांट भी बंद कर दिए। बिजली कटौती करनी पड़ी। ऐसे हालात से निपटने के लिए सरकार के खुद के सस्ती बिजली के प्लांट जरूरी हैं। इसमें सोलर एनर्जी और लिग्नाइट आधारित प्लांट की जरूरत है।
जमीन अवाप्त में देरी
प्लांट के लिए करीब 119 हेटेक्यर जमीन की अवाप्ति होनी है। यह प्रक्रिया काफी पहले ही पूरी हो जानी चाहिए थी, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण देर होती गई। अब इस काम को भी गति दी गई है। फैक्ट फाइल
- 900 ग्राम लिग्नाइट लगेगा एक यूनिट बिजली उत्पादन में
- 25 मिलियन टन लिग्नाइट की जरूरत होगी 25 साल उत्पादन के लिए
- 05 हजार 50 करोड़ रुपए का एमओयू हो चुका है एनएलसी के साथ