क्या है मामला सीबीआई ने अनुसूचित जाति जनजाति मामलात की विशेष अदालत ने 25 जनवरी 2019 को पारित आदेश को पहले निगरानी याचिका दायर करते हुए चुनौती दी थी, लेकिन बाद में सीबीआई के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने याचिका की सुनवाई सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शुरू की थी। ट्रायल कोर्ट ने एफबीआई की गवाह अम्बर बी कार की गवाही वीडियो कांफ्रेंसिंग से करवाने की बजाय उसे सम्मन जारी करने बुलाने का आदेश दिया था।
बचाव पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि राजस्थान हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने वीडियो टेली कांफ्रेंसिंग (वीटीसी) के लिए बनाए गई गाइडलाइन को स्वीकार नहीं किया है और पिछले साल 31 दिसंबर को जारी नए क्रिमिनल रूल्स में भी वीटीसी को लेकर कोई प्रावधान उल्लेखित नहीं है। अधिवक्ताओं ने अपनी बहस में कहा था कि दंड प्रकिया संहिता में वीटीसी को लेकर कोई उपबंध नहीं है, सीबीआई जानबूझकर गवाह को पेश नहीं करके प्रकरण में देरी कर रही है।
सीबीआई ने 25 मई, 2017 को गवाह को सम्मन जारी करवाया था, लेकिन अब तक उसे कोर्ट में पेश नहीं करवाया गया। बचाव पक्ष ने सीबीआई पर आरोप लगाते हुए कहा कि एजेंसी ने पिछले दो साल में प्रकरण में देरी करने की कोशिशें की हैं, जिनमें कई बार सम्मन जारी करवाए गए तो कई बार वीटीसी की मांग की गई। सीबीआई ने अधीनस्थ न्यायालय में छह बार वीटीसी की मांग की, जिसे अस्वीकार किया गया। कई बार इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जो कि विधि प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
एजेंसी ने पिछले दो सालों में 16 बार अलग-अलग तरीके अपनाकर बचाव पक्ष के मौलिक अधिकारों का हनन किया है। अधिवक्ता ने यह तर्क भी दिया कि संसद ने सीआरपीसी में वर्ष 2009 में संशोधन किया था, जिसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग से गवाही के नियम मजिस्ट्रेट ट्रायल के लिए ही बनाए गए, सेशन ट्रायल को इससे दूर रखा गया था। उन्होंने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय ने एफबीआई की गवाह को सम्मन जारी कर तलब करके किसी तरह की विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि पिछले आठ महीने से इस गवाह के लिए ट्रायल रुकी हुई है और सितंबर, 2018 से अब तक 34 बार तारीखें पड़ चुकी हैं।