ऐसे बढ़ते गए जिले
अप्रैल 1982 धौलपुर को भरतपुर जिले से अलग किया, जिससे जिलों की कुल संख्या 27 हुई।अप्रेल 1991 – 31 जिले
1997 – 32 जिले
2008 – प्रतापगढ़ जिला बनने पर 33
2023-50 जिले
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यह सही है धौलपुर, करौली व राजसमंद अब तक जिले जैसा स्वरूप नहीं ले पाए हैं। कुछ जिले तो उपखंड के समान हो गए। विकास के लिए न जिले का आकार बड़ा होना अच्छा है। और न ही आकार बहुत छोटा होना अच्छा है। केकड़ी जैसा क्षेत्र जिला नहीं बनाया जा सकता। जिले का क्षेत्र कम से कम 60-70 किमी तो होना ही चाहिए। कम से कम 4 से 5 उपखंड एक जिले में होने चाहिए। यह भी देखा जाए कि विकास के लिए पर्याप्त पैसा है या नहीं, क्योंकि प्रशासनिक व्यवस्थाएं जुटाना उतना मुश्किल नहीं होता।पंवार कमेटी ने इन मानकों को प्रमुखता दी
-क्षेत्रफल-आबादी
-सांस्कृतिक एकरूपता
-दूरस्थ गांव की जिला मुख्यालय से दूरी
-संसाधन
-मूल जिले की आबादी
-तहसील व ब्लॉक सहित प्रशासनिक ढांचा
-आबादी घनत्व
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मंत्रिमंडलीय उपसमिति में विचार
-सामान्य स्थिति में जिले की आबादी 10 लाख, आदिवासी क्षेत्र के 4-5 लाख भी पर्याप्त।विशेषज्ञ बोले….. ये मानक प्रमुख
-इंफ्रास्ट्रक्चर- निवेश की संभावना ।-आर्थिक तरक्की के लिए संभावना ।
-आबादी ।
-सरकारी सुविधाएं लोगों तक पहुंचाना आसान हो जाए।
-विकास से संबंधित पृष्ठभूमि ।
-एक उपखंड अधिकारी के पास कोर्ट में 1500 से अधिक मुकदमे न हों।
-एक अति. जिला कलक्टर के पास 2000 से अधिक मुकदमे नहीं हो।
इसलिए नए जिले….
-जनता की आसानी से सुनवाई हो।-जनसुविधाओं पर मॉनिटरिंग बढ़े। गांव से जिले की दूरी घटे।
-जिले में मेडिकल कॉलेज खुल सके।
-उच्च शिक्षा संस्थान खुल सकें।
-कस्बे और शहरों का विकास हो ।
-रोजगार के साधन बढ़ें।
-आर्थिक संसाधन ज्यादा मिलें।