इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद यह स्थिति भारत के लिए संपूर्ण संतुष्टि की वजह नहीं हो सकती। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे यहां से ऐसी प्रयोगधर्मी प्रतिभाएं सामने नहीं आ रही हैं जिनकी खोजों से दुनिया पर भारत की धाक जम सके। दुनियाभर की इंडस्ट्री के हिसाब से कौशल का विकास एक बात है लेकिन अपने आविष्कारों और तकनीकों से दुनिया पर छा जाना दूसरी बात। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले वर्षों में भारत में कौशल विकास के लिए बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ी है। इसी की धमक दावोस में दिखाई पड़ रही है। इसी का असर है कि भारत की आर्थिक वृद्धि के प्रति आश्वस्त 87 फीसदी सीईओ अपना कामकाज बढ़ाने और कर्मचारियों की भी संख्या में बढ़ोतरी की बात करते नजर आए।
सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली को नियोक्ताओं की जरूरतों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करनी होगी। युवा क्षमताओं के पूरे उपयोग के लिए उच्च शिक्षा में सुधार, कौशल विकास और अर्थव्यवस्था की गति पर भी ध्यान देना होगा। इस मोर्चे पर सफलता ही 2047 तक विकसित भारत के स्वप्न को साकार कर सकती है।