यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि देशभर में आपराधिक मामलों की पेंडेंसी तेजी से बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश को देखें तो अकेले उच्च न्यायालय में 2 लाख से अधिक आपराधिक अपीलें लंबित हैं, जबकि महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में भी यह संख्या हजारों में है। देश के दूसरे प्रदेशों में भी कमोबेश हालात अच्छे नहीं हैं। यह स्थिति हमारी न्यायप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। उच्च न्यायालयों में रिक्तियां न्याय के इस पहिए के धीमे होने का एक प्रमुख कारण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में फैसला दिया था कि एडहॉक जजों की नियुक्ति तभी की जा सकती है, जब रिक्तियां स्वीकृत संख्या का 20 प्रतिशत या अधिक हों।
यदि सुप्रीम कोर्ट 2021 की शर्तों में बदलाव करता है तो यह आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए नई सुबह का संकेत है। यह ध्यान रखना होगा कि एडहॉक नियुक्तियां तात्कालिक उपाय माात्र हैं। जजों की स्थाई नियुक्ति और मामलों की डिजिटल ट्रैकिंग जैसी दीर्घकालिक पहल भी आवश्यक हैं। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र और राज्यों को समन्वय भी रखना होगा।