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जयपुर

सफर, रपटीली राहों का

जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को प्रस्तुत कर रही है यह रचना।

जयपुरJul 20, 2020 / 05:24 pm

Chand Sheikh

सफर, रपटीली राहों का

सफर, रपटीली राहों का

कविता
शांतनु भारद्वाज

सफर है सुहाना या बनाना पड़ेगा,
रुक जा ऐ मेरे साथी,
एक दिन तुझे भी झुक जाना पड़ेगा,
वो उम्र होगी या हालात,
जिसके सामने झुक जाएगा
तू अपने आप,
जी भर के जी ले आज यहां,
जहां से आया है वही तुझे जाना पड़ेगा,
हालात से दूर मत भाग,
उनसे दो-दो हाथ तो कर,
लेकिन…..जरूरत पड जाए तो
उनसे हाथ मिलाना भी पड़ेगा,
सफर है सुहाना या बनाना पड़ेगा ।।
तेरा भी हश्र कल वही होगा, जो मेरा होना है,
एक दिन सब छोड के हमें जाना ही पड़ेगा,
वो स्वर्ग होगा या नर्क, इस बहस में पडऩा भारी है,
दस्तक जो भी दे इनमें से, चाह या मत चाह..
गले तो उसे लगाना पड़ेगा,
सफर है सुहाना या बनाना पड़ेगा ।।
जो मेरे अजीज हैं या जो करीब हैं,
जो मुझसे दूर हैं या बदनसीब हैं,
सुन उनसे एक बात कह देना..
अंतिम क्षणों में जिंदगी के, लोगों का हुजूम हो ना हो,
लेकिन दिलों का कारवां तो सजाना पड़ेगा।

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