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जयपुर

राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा- ‘भंगी, नीच, भिखारी’ बोलना जातिसूचक नहीं, मायावती ने जताया विरोध; CM से की ये डिमांड

Mayawati News: बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जातिसूचक शब्द कहने वाले आरोपियों के ऊपर से एससी-एसटी एक्ट हटाने की फैसले को लेकर सरकार पर निशाना साधा है।

जयपुरNov 16, 2024 / 05:52 pm

Nirmal Pareek

फाइल फोटो

Mayawati News: बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा जातिसूचक शब्द कहने वाले आरोपियों के ऊपर से एससी-एसटी एक्ट हटाने की फैसले को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। मायावती ने भाजपा और कांग्रेस की सरकारों को घेरते हुए अपने एक्स हैंडल पर बयान जारी कर कहा कि दलित और आदिवासियों के साथ होने वाले अत्याचारों को लेकर यह दोनों सरकारें कभी गंभीर नहीं रहीं हैं।
बता दें बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजस्थान की भजनलाल सरकार से सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की मांग की है। राजस्थान हाईकोर्ट ने यह फैसला अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान विभाग के कार्मिकों से हुई बहस से जुड़े मामले में सुनाया है।
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मायावती ने सरकार से की ये मांग

दरअसल, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने सोशल मीडिया पर लिखा कि राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा ‘भंगी, नीच, भिखारी, मंगनी’ आदि शब्द कहने वाले आरोपियों के ऊपर लगे एससी-एसटी एक्ट की धारा को हटाने के हाल के फैसले से जातिवादी व असमाजिक तत्वों के हौंसले बढ़ सकते हैं, जिसे राज्य सरकार को गंभीरता से लेते हुए आगे अपील में जाना चाहिए, बीएसपी की यह मांग है।
उन्होंने आगे कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में चाहे भाजपा, कांग्रेस अथवा किसी अन्य विरोधी पार्टी की सरकार हो, खासकर दलितों व आदिवासियों को उनका कानूनी अधिकार देना तो बहूत दूर, उनके खिलाफ जातिवादी द्वेष व जुल्म-ज्यादती की घटनाएं लगातार जारी हैं, जिसके प्रति समुचित संवेदनशीलता बरतना जरूरी।

हाईकोर्ट ने दिया था ये फैसला

गौरतलब है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’, ‘मांगनी’ जैसे शब्द कहने मात्र को जातिसूचक शब्द कहकर नीचा दिखाने का अपराध नहीं माना हैं। साथ ही, ऐसे शब्दों से संबोधित करने के आरोपियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के अंतर्गत लगाए गए आरोप हटाकर याचिकाकर्ताओं को आंशिक राहत दी। न्यायाधीश बीरेन्द्र कुमार ने अचल सिंह व अन्य की अपील पर यह आदेश दिया है।
तथ्यों के अनुसार 31 जनवरी 2011 को जैसलमेर में एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें अपीलार्थियों पर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हटाने गए अधिकारियों को जातिसूचक शब्द कहने और उनसे दुर्व्यवहार किए जाने का आरोप लगाया। अपीलार्थियों का कहना था कि पुलिस ने जांच में इन आरोपों को गलत मानते हुए एफआर पेश कर दी। इसके बावजूद प्रोटेस्ट याचिका के आधार पर अधीनस्थ अदालत ने प्रसंज्ञान लेते हुए आरोप तय कर दिए।

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