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जयपुर

निकम्मा… जैसा टाइटल है, वैसी ही फिल्म है

डायरेक्शन-एडिशनल स्क्रीनप्ले: साबिर खानराइटिंग: वेणु श्रीरामडायलॉग्स: सनमजीत तलवारम्यूजिक: अमाल मलिक, जावेद-मोहसिन, विपिन पटवा, गौरव दासगुप्तासिनेमैटोग्राफी: हरि वेदांतमएडिटिंग: मनन सागरस्टार कास्ट: अभिमन्यु दासानी, शिल्पा शेट्टी, शर्ली सेतिया, अभिमन्यु सिंह, समीर सोनी, सचिन खेडेकर, विक्रम गोखलेरन टाइम: 152 मिनट

जयपुरJun 18, 2022 / 01:11 am

Aryan Sharma

निकम्मा... जैसा टाइटल है, वैसी ही फिल्म है

निकम्मा… जैसा टाइटल है, वैसी ही फिल्म है

आर्यन शर्मा @ जयपुर. ‘निकम्मा’ 2017 में आई नानी अभिनीत तेलुगू फिल्म ‘मिडिल क्लास अब्बाई’ (एमसीए) का हिंदी रीमेक है। जिन्होंने ‘एमसीए’ देखी हुई है, उनके लिए ‘निकम्मा’ बेहद खराब अनुभव की तरह है। उनके जेहन में यही सवाल आएगा कि क्या रीमेक बनाना जरूरी था? हालांकि यह एक्शन, इमोशंस और रोमांस का पैकेज है, मगर सब कुछ सतही है। लिहाजा ऑडियंस को कनेक्ट करने में विफल है। ‘निकम्मा’ में ऐसी कोई ‘खूबी’ नहीं है, जो दर्शकों को इम्प्रेस कर सके। शुरुआत के कुछ देर बाद ही फिल्म बोरिंग लगने लगती है। करीब ढाई घंटे की यह फिल्म देखना सिर्फ अपने समय की बर्बादी है।
कहानी मिडिल क्लास लड़के आदि (अभिमन्यु दासानी) की है, जिसे देर तक सोना, दोस्तों के साथ मस्ती और पार्टी करना पसंद है। उसका फोकस जिंदगी को अपने तरीके से एंजॉय करने पर है। वह फ्यूचर और कॅरियर को लेकर सीरियस नहीं है। तभी उसकी जिंदगी में ‘थंडर वुमन’ यानी उसकी भाभी अवनि (शिल्पा शेट्टी) की एंट्री होती है। अवनि आरटीओ ऑफिसर है। अवनि के कहने पर उसे घर के सारे काम करने पड़ते हैं। यहां तक कि आदि का भाई रमन (समीर सोनी) भी अब अवनि की ही सुनता है। यूं कहें कि आदि की आरामतलब जिंदगी में खलल पड़ जाती है।

बनावटी दिखता है सब कुछ
कहानी बुरी नहीं है। लेकिन, इसका हिंदी रूपांतरण काफी बनावटी दिखता है। इसमें एक्शन, इमोशंस, रोमांस, चैलेंज जैसी बातें उभर कर सामने नहीं आती। यानी राइटिंग में कसावट की कमी है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग नहीं है। संवाद बेअसर हैं। साबिर खान का डायरेक्शन लचर और उलझा हुआ सा है। उन्होंने इस कहानी को इतने बेढंगी तरीके से पेश किया है कि झेलना मुश्किल है। फिल्म ‘मिडिल क्लास अब्बाई’ में देवर-भाभी के किरदार सीधे दर्शकों से कनेक्ट होते हैं, लेकिन ‘निकम्मा’ में ऐसा नहीं है। गीत-संगीत भी फिल्म का एक कमजोर पक्ष है। ऐसा कोई गाना नहीं है, जो जुबां पर चढ़े। संपादन सुस्त है। रन टाइम इरिटेटिंग है। फिल्म ‘रबर’ के माफिक खींची हुई है। सिनेमैटोग्राफी ठीक है। राइटिंग तो फीकी है ही, अभिमन्यु दासानी की परफॉर्मेंस भी भरोसा नहीं देती। शिल्पा शेट्टी की अदाकारी और स्क्रीन प्रजेंस स्टनिंग है। शर्ली सेतिया की क्यूटनेस लुभाती है, पर अभिमन्यु के साथ उनकी लव कैमिस्ट्री में ‘स्पार्क’ मिसिंग है। अभिमन्यु सिंह की एक्टिंग कामचलाऊ है। उन्हें अब कुछ नया करने की दरकार है। समीर सोनी, विक्रम गोखले, सचिन खेडेकर जैसे कलाकारों का रोल कुछ खास जिक्र करने लायक नहीं है। खैर, फिल्म में सब कुछ खोखला सा और नकली है। जैसा टाइटल है, वैसी ही यह फिल्म है। ऐसे में इस फिल्म में हीरो और विलेन के बीच ‘सुपर ओवर’ देखने की बजाय किसी टी-20 मैच में हुआ सुपर ओवर देख लें। कम से कम रोमांच तो आएगा। ‘निकम्मा’ को देखा तो धन तो जाएगा ही, समय भी बर्बाद होगा।

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