क्या आप जानते हैं कि महाभारत के योद्धा बर्बरीक का मंदिर कहां पर है? बर्बरीक और भगवान कृष्ण का क्या रिश्ता था? यहां के लोगों का मानना है कि मंदिर में बर्बरीक का सिर है, जो महाभारत काल के महान योद्धा थे। उन्होंने महाभारत के युद्ध में कृष्ण के कहने पर अपना सिर काटकर दे दिया था। उन्होंने भगवान कृष्ण से वरदान हासिल किया था कि कलयुग में भक्त उन्हें उनके ही नाम श्याम से पूजेंगे। उनका मंदिर खाटू गांव में मौजूद है, इसलिए देश-दुनिया में उन्हें खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है।
इसलिए कहा जाता है हारे का सहारा?
खाटूश्याम के भक्तों का मानना है कि बर्बरीक की मां ने उनसे वचन लिया था कि हारते हुए पक्ष की ओर से ही लड़ना। इसलिए बर्बरीक ने कृष्ण के पूछे जाने पर बताया कि वह पांडवों और कौरवों में हारते हुए पक्ष की ओर से ही लड़ेंगे। यही कारण है कि उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है।
सिर दान करने की पूरी कहानी
बर्बरीक को कुछ ऐसी सिद्धियां प्राप्त थी कि वह पलक झपकते ही महाभारत का युद्ध लड़ रहे सभी योद्धाओं को एक बार में मार सकते थे। महाभारत के अनुसार, कृष्ण ने उनसे कहा कि एक तीर से पेड़ के सभी पत्ते भेदकर दिखाओ, तो बर्बरीक ने सभी पत्तों को छेद दिया था। इसके बाद उनका बाण श्रीकृष्ण के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, क्योंकि उन्होंने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा रखा था। कृष्ण ने जब ब्राह्मण का रूप बनाकर बर्बरीक से शीश दान मांगा तो वचन से बंधे हुए बर्बरीक ने अपना सिर दान कर दिया था।
कलयुग के भगवान… खाटूश्याम
खाटूश्याम के भक्तों का कहना है कि बर्बरीक ने शीश दान करने से पहले श्रीकृष्ण का विराट रूप देखा था। उन्होंने महाभारत का पूरा युद्ध देखने की इच्छा जताई थी। इस पर श्रीकृष्ण ने उनका सिर रणभूमि के नजदीक एक पहाड़ी पर रख दिया। वहीं से उन्होंने पूरा युद्ध देखा। बाद में श्रेष्ठ योद्धा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने श्रीकृष्ण का नाम लिया। उन्होंने कहा कि कृष्ण ही सबसे बड़े योद्धा हैं। क्योंकि हर तरफ उनका सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ नजर आ रहा था। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग में उन्हीं के एक नाम श्याम से पूजे जाने का वरदान दिया था। यही कारण है कि मंदिर का नाम खाटू श्याम पड़ा है। खाटू में कैसे आया बर्बरीक का सिर?
मान्यता है कि खाटू में जहां बर्बरीक का सिर दफन था। वहां रोज एक गाय आकर खुद ही दूध बहाती थी। इसके बाद खुदाई करने पर
सीकर के खाटू गांव में शीश मिला। जानकारी के मुताबिक शुरुआत में एक ब्राह्मण ने उसकी पूजा की थी। इसके बाद फिर एक बार खाटू के राजा को सपने में उस जगह मंदिर बनाने और बर्बरीक का शीश वहां स्थापित कर पूजा पाठ करने की बात कही गई थी। जानकारी के मुताबिक, मूल मंदिर 1027 में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने बनवाया था। मारवाड़ के शासक दीवान अभय सिंह ने 1720 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।