रोल के लिए डेढ़ महीने की मेहनत
बांछाराम बनने के लिए मैंने डेढ़ महीने रिहर्सल की है। खुद को एक कमरे में बंदकर मैं एक 80 साल के बूढ़े किसान की मानसिकता और बॉडी लैंग्वेज को समझने की कोशिश करता रहा। बतौर कलाकार मैं उस कहानी को अपने जीवन में उतारकर सोचता हूं कि इस किरदार पर क्या बीती होगी। इस प्ले को मैं पहले मुंबई में भी कर चुका हूं, जहां हमें बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला।
बगिया हड़पने में जुटा हर किरदार
नाटक में दिखाया गया है कि बूढ़े बांछाराम ने बड़ी मेहनत से एक बगिया बनाई है, जिस पर गांव के लालची जमींदार से लेकर उसके अपने दोहिते और नाते-रिश्तेदारों की भी नीयत खराब है। सब कैसे भी कर के बांछाराम को रास्ते से हटाकर उसकी बगिया और जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। आखिर में बांछाराम को अपनी बगिया मिल जाती है और लालची लोग अपने अंजाम को पहुंच जाते हैं।