जानकारों की मानें तो दुर्गा माता मंदिर की स्थापना आश्विन शुक्ल अष्टमी संवत 1872 में पूर्व राजा सवाई प्रताप सिंह ने करवाई। मंदिरश्री दुर्गा माता ट्रस्ट के अध्यक्ष महेन्द्र भट्टाचार्य ने बताया कि पूर्व मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम संवत 1600 में पश्चिम बंगाल के जैसोर से शिला माता के साथ दुर्गा माता की प्रतिमाएं लेकर आए थे। तब दुर्गा माता को महल में विराजमान किया गया।
अश्वमेघ यज्ञ का अश्व जहां रुका, वहीं बन गया मंदिर
सवाई प्रतापसिंह ने संवत 1872 में जयपुर में अश्वमेघ यज्ञ करवाया, तब अश्व छोड़ा गया, यह अश्व दुर्गापुरा में जहां माता का मंदिर है, वहां आकर रुका, इसलिए माता की स्थापना इसी जगह करवाई गई। पहले यहां छोटी ढाणी हुआ करती थी, जो अब दुर्गापुरा में बदल गई। उनकी 12वीं पीढ़ी मंदिर की सेवा पूजा कर रही है।
जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सियाशरण लश्करी बताते है कि दुर्गा माता मंदिर की स्थापना के समय मंदिर छोटा सा था, माधोसिंह के समय मंदिर का विस्तार हुआ, तब बाला बक्श खवास ने मंदिर का निर्माण किया। जयपुर के दक्षिण भाग में रहने वाले लोगों के लिए यह मंदिर आस्था का केन्द्र बना। दुर्गापुरा बाला बक्श खवाज कीजा गीर में भी शामिल है।
दुर्गा माता अष्टभुजाधारी है, जिनके दाहिने एक हाथ में तलवार, दूसरे में चक्र, तीसरे हाथ में डमरू और बाएं पहले हाथ में ढाल, दूसरे में शंख व तीसरे में गदा है। जबकि चौथे दोनों हाथों से महिषासुर का वध करते हुए दर्शन दे रही है।
नवरात्र में माता की जरी पोशाक भी खास होती है। यह पोशाक 13 मीटर कपड़े में तैयार हेाती है। अध्यक्ष महेन्द्र भट्टाचार्य ने बताया कि पुरानी पोशाक को लोग अपने बच्चों के कपड़े सिलाने के लिए ले जाते है। भक्त अपने बच्चों को नजर और बीमारियों से बचाने के लिए माता की पोशाक से कपड़े सिलाकर पहनाते है। माता को हर दिन सुबह—शाम नई पोशाक धारण होती है। एक पोशाक 4 बार ही धारण होती है।
नवरात्र में आमेर शिला माता के छठ का मेला भरता है, जबकि दुर्गापुरा स्थित दुर्गा माता के सप्तमी का मेला भरता है। इस बार 21 अक्टूबर को माता के मेला भरेगा। इस दिन माता के विशेष झांकी के दर्शन होंगे। शाम को शोभायात्रा के साथ माता को ध्वजा चढ़ाई जाएगी। अष्टमी पर रविवार को रात 7:30 बजे हवन होगा। 23 अक्टूबर को नवमी की पूजा होगी।
नवरात्र में दुर्गा माता के नौ दिन तक विशेष श्रृंगार किया जाता है। नवरात्रा में मंदिर के पट सुबह 6 से दोपहर 12 बजे और शाम 5 से रात 9 बजे तक खुलते है। अन्य दिनोें में दर्शन रात 8 बजे तक ही खुलते है।
अध्यक्ष भट्टाचार्य बताते है कि दुर्गा माता को नियमित रूप से बाल भोग में दूध व पताशे का भोग लगता है, जबकि सुबह 11.30 बजे राजभोग में दाल, चावल, सब्जी व रोटी का भोग लगता है। वहीं हर अष्टमी पर छोले, हलुवा, खीर व पुड़ी का भोग लगता है।