बस्तर विश्वविद्यालय ने बाकायदा इन शोधार्थियों का अलग अलग स्तर पर प्रवेश परीक्षा ली गई। चयनित शोधार्थियों से रिसर्च के अभिरुचियों के बारे में पूछताछ की गई। इसके बाद गाइड का चयन करवाया गया। इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद इन्हें पीएचडी स्कॉलर्स बनाने क्लासेस भी शुरू हुई। शुरुआत में जोश- खरोश के कुछ सार्थक परिणाम भी आए। धीरे- धीरे उत्साह ठंडा होता चला गया। नौबत यह हुई कि अब न तो शोधार्थी नजर आ रहे है न ही नए शोधार्थियों के लिए अवसर बन पा रहा है।
10 प्रतिशत से अधिक नकल तो होंगे रिजेक्ट
शोधपत्रों के आधार पर पीएचडी की उपाधि दी जानी है। इन शोधपत्र की जांच- परख के लिए यूनिवर्सिंटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी ) ने सभी विश्वविद्यालयों को प्लेगेरिज्म उरकुंड साफटवेयर उपलब्ध कराया है। इस साफ्टवेयर के उपयोग से किसी भी शोधपत्र का तुरतफुरत अध्ययन किया जा सकता है। दरअसल यह साफ्टवेयर न सिर्फ शोधपत्र का अध्ययन करेगा बल्कि यह बता देगा कि इसमें कितने प्रतिशत सामग्री मौलिक व कितनी नकल की गई है। नकल का प्रतिशत यदि 10 प्रतिशत से अधिक होगा तो यह शोधपत्र मान्य ही नहीं होगा। शोधार्थियों को यह स्पष्ट बताना होगा कि यह शोध सामग्री किस संदर्भ से उठाई गई है। यहीं वजह है कि ज्यादातर शोधार्थी इससे बचने की कोशिश में अपने शोध जमा करने हिचक रहे हैं।
विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए प्रोग्राम चलाया जा रहा है। लगभग चार साल हो गए हैं। जो भी शोधार्थी अपना शोधपत्र जमा करवाएंगे, उसकी जांच-परख उरकुंड साफ्टवेयर के जरिए की जाएगी। शोधार्थियों व गाइड को कहा गया है कि उनके शोधपत्र की जांच इसी साफ्टवेयर के जरिए हो। फिलहाल किसी ने इसे जमा नहीं करवाया है।
प्रो. एसके सिंह, कुलपति, बविवि