इसका भी प्रयोग बेहद जरूरी काम होने पर ही करते थे। गुरुवार को अरिहंत ने ओसवाल जैन श्वेतांबर समाज के अध्यक्ष भंवर बोथरा, महासचिव अनिल कगोत, सचिव अशोक पारख, कार्यकारिणी सदस्य देवी चौपड़ा, प्रकाश बाफना, नीरज बाफना, भोमराज बुरड़ समेत अन्य लोगों के साथ मीडिया से बात की।
chhattisgarh news: बचपन से कड़ा तप कर रहा अरिहंत
चाचा किशोर पारेख ने बताया कि अरिहंत परिवार में सबसे छोड़ा लड़का है उसके बावजूद भी वह सबसे अधिक धर्म के करीब रहा है। पिछले पांच सालों की बात करें तो उसने कभी रात्रि भोज नहीं किया और आज भी वह कीपेड वाला फोन वह भी बेहद जरूरी होने पर प्रयोग करता है। इतना ही नहीं उन्होंने आज तक कोई हिंसा भी नहीं की है। उनके जिम्मेदारी से बचने जैसी बात नहीं है। परिवार संपन्न हैं। दीक्षा का अमीरी गरीबी से कोई लेना देना नहीं है। वे कहते हैं कि संयम के रास्ते पर चलकर वे ज्यादा लोगों की सेवा कर सकते हैं। इसके साथ ही अब परिवार के सबसे बड़े और सबसे छोटे दोनों ही दीक्षा लेने वाले हो गए हैं।
दीक्षा के पहले चल रहा तीन दिवसीय तीर्थ
चाचा किशोर पारेख ने बताया कि जैन समाज में दीक्षा का मतलब कठिन अनुशासन होता है। समाज के लोगों ने इसके लिए पिछले 15 जनवरी से विभिन्न आयोजन किए जा रहे हैं। अभी 18 जनवरी तक जगदलपुर में ही अलग-अलग कार्यक्रम होंगे इसके बाद 18 जनवरी को शोभा यात्रा निकाली जाएगी। इसके बाद रायपुर जाएंगे। वहां तीन दिवसीय कैवल्यधाम तीर्थ कार्यक्रम में वे दीक्षा लेंगे। इस तरह अब उन्हें पांच महाव्रत का पालन करना होगा।
अरिहंत ने बताया कि वैराग्य की ओर जाने की कोई उम्र नहीं होती। जब सत्य का ज्ञान हो जाए तब उस ओर व्यक्ति निकल पड़ता है। उन्हें उनके गुरु से मिलकर सत्य का ज्ञान हुआ। परिवार को छोडक़र जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि शरीर की सेवा अलग होती है।
दस साल पहले दादा ने ली थी दीक्षा
chhattisgarh news: मोक्ष के करीब पहुंचना है तो इसे त्यागना होता है। उन्होंने कहा कि साधू का वेश लिए बिना मोक्ष नहीं मिल सकती इसलिए उन्होंने पहले श्रावक की तरह जीवन भी जीया है और अब परिवार और गुरु की अनुमति के बाद वे साधू बनने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि परिवार के आस पास रहने से हमेशा अपेक्षा रहती है। मोह माया से दूर रहना ऐसे में मुश्किल है। दस साल पहले दादा ने ली थी दीक्षा, अब दादा-पोता के गुरु एक: बचपन से ही धार्मिक जीवन के करीब रहने वाले अरिहंत के दादा केशरी चंद पारख जो वर्तमान में मुनिराज प्रशांत सागर महाराज साहब हैं ने भी दस साल पहले दीक्षा ली थी।
उसके बाद से इस दिशा में रूचि और बढ़ गई। परिवार वालों और अपने गुरू की अनुमति के बाद वे 24, 25 और 25 जनवरी को कैवल्यधाम कुम्हारी दुर्ग में दीक्षा लेंगे। मालूम हो कि दस साल पहले दादा प्रशांत सागर ने जिस गुरु महेंद्र सागर से दीक्षा ली थी अब अरिहंत भी उनसे ही दीक्षा लेने जा रहे हैं।