दो घंटे तक चला ऑपरेशन, हुआ डिस्चार्ज: मेडिकल कॉलेज में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में तेजी से सुधार हो रहा है। इस मामले में भी जैसे ही टंकित भर्ती हुआ तुरंत ही उसे मेजर आपरेशन थीएटर में ले जाकर एनेसथीसिया विभाग के चिकित्सकों एवं शिशुरोग विभाग के चिकित्सकों द्वारा इमरजेंसी आपरेटिव प्रोसिजर किया गया।
बच्चे को शिशुरोग विभाग में गहन चिकित्सा इलाज दिया गया। उसे वेंटिलेटर में रखकर गहन इलाज किया गया। जिसके बाद अब मासूम खतरे से बाहर है। इस दौरान यहां शिशुरोग चिकित्सक डॉ. डीआर मण्डावी, डॉ. पुष्पराज प्रधान, डॉ. पालाराम मीना, डॉ. प्रियंका, डॉ. दिवाकर, डॉ. बबीता एवं डॉ. अनुरूप साहु की टीम एवं स्टाफ नर्सों के गहन ईलाज से संभव हो पाया।
मेकाज में ऑपरेशन के जरिए निकाला गया ढक्कन मेकाज अधीक्षक डॉ. अनुरूप साहू ने बताया कि बच्चा उनके यहां 20 फरवरी की सुबह 10.30 बजे पहुंचा। अत्यंत गंभीर व बेहोशी की हालत में उसे अस्पताल लेकर आया गया था। बच्चे की सांस भी अच्छे से नहीं चल रही थी। डॉक्टरों ने ढक्कन को बाहर से ही निकालने के लिए प्रयास शुरू किए। लेकिन गंभीर स्थिति को देखते हुए ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया। क्योंकि गले में फंसा हुआ ढक्कन सांस को रोक रहा था इसलिए गलती की गुंजाइश बिल्कुल नहीं थी। इसलिए बिना देर किए इसका इसोफेगोस्कोपी रिमूअल ऑफ फारेंन बॉडी यानी की इसे निकालने के लिए ऑपरेशन शुरू किया गया। जिसमें बच्चे की जान बच गई।
प्लास्टिक के ढक्कन व सेफ्टी पिन से दूर रखें, उन्हें अपनी देखरेख में खेलनें दें परिवार वालों को जरूरत है कि वे बच्चों का विशेष रूप से ध्यान दें। प्लास्टिक ढक्कन हो या फिर सेफ्टी पिन जैसे खतरनाक चीजें या फिर अन्य दवाएं जो बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है, ऐसी चीजों को बच्चों के पहुंच से दूर रखना चाहिए। साथ ही आज के दौर में मोबाइल जैसी चीजों से बच्चों को दूर कर आउट डोर गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जिससे की बच्चों का बौद्धिक विकास बेहतर तरीके से हो सके। आज के दौर में बच्चों को मैदान तक लेकर जाने की जिम्मेदारी भी परिवार की है क्योंकि मोबाइल गेम व वीडियो गेम जैसी चीजों को खेलकर बच्चों में गुस्सा, जल्द डिप्रेशन आने जैसी स्थिति बन रही है जिसका रिसर्च रिपोर्ट भी सभी के सामने है।