पंचदेव पूजन का है केंद्र-
क्षेत्रीय बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर को तैयार करने के पहले मेरू श्रीयंत्र का अध्ययन किया गया। उसी के अनुसार इसे तैयार किया गया।
यहां गर्भगृह में भोलेनाथ अपने गणों के साथ, सामने गणपति रिद्धि सिद्धि के साथ, बांई ओर दक्षिणमुखी हनुमान, मंदिर के पिछले हिस्से में मां नर्मदा व दाहिनी ओर भैरव बाबा की मूर्ति है। पंचदेव पूजन के लिए यह शिव मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। सावन में यहां रुद्राभिषेक करने वालों की भीड़ लगती है।
दीवारों में दरार तक नहीं-
इस ऐतिहासिक मंदिर की खासियत यह भी है कि डेढ़ सौ साल से पुराना होने के बावजूद इसकी दीवारों में अभी तक दरारें नहीं पड़ी हैं। मन्दिर की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक इसमें कोई टूट फुट नहीं हुई। बताया जाता है कि इसके संस्थापक केशवानंद और हरिहरानंद श्रीशक्ति के उपासक थे। उन्होंने ही निर्माण शुरू कराया था। उनके बाद अगली दो पीढियों ने इसके निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया। अब यह शिवालय गढ़ा उपनगरीय क्षेत्र का प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यहां सावन के महीनें में शिवभक्त सुबह से ही जल अर्पित करने पहुंच रहे हैं।
पुष्य में निर्माण से लंबा होगा जीवनकाल-
ज्योतिषाचार्यो के अनुसार 27 नक्षत्रों के आधार पर ज्योतिषीय गणनाएं होती हैं। इनमें से हर एक नक्षत्र का शुभ-अशुभ प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। नक्षत्रों के क्रम में आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है, तथा शुभ फल प्रदान करती है। क्योंकि यह नक्षत्र स्थायी व दीर्घावधि तक फलदायक होता है। यही वजह है कि निर्माण को डेढ़ शताब्दी से अधिक समय बीतने के बावजूद इसकी सुंदरता जस की तस हैं।