जबलपुर। देश कीं शैक्षणिक व्यवस्था में बदलाव के सबसे बड़े हिमायती प्रो.यशपाल की मौत के साथ ही हमने एक महान शिक्षा-शास्त्री और सुधारक को खो दिया है। बच्चों के नाजुक कंधों पर से बस्ते का बोझ कम करने की उनकी कोशिश को कोई कभी नहीं भूल पाएगा। बचपन में प्रोफेसर यशपाल खुद बड़ा बस्ता लेकर स्कूल जाते थे। जबलपुर के एक स्कूल में उन्होंने प्राइमरी एजूकेशन ली थी। यहां आज भी उनके कई किस्से कहे-सुने जाते हैं।
सुनाते थे संस्मरण
प्रोफेसर यशपाल ने जबलपुर के महाकोशल स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी। इस जुड़ाव के कारण वे कई बार जबलपुर आते-जाते रहे। अपने जबलपुर प्रवासों के दौरान प्रो.यशपाल प्राय: अपने बचपन के संस्मरण सुनाया करते थे। यही नहीं वे यहां जज्बाती हो जाते थे और जबलपुर के प्रति कृतज्ञता को खुलेआम व्यक्त किया करते थे। रादुविवि के पूर्व कुलपति प्रो.शिवप्रसाद कोष्टा बताते हैं कि उनकी स्कूली शिक्षा के दौरान के उनके मित्रों के बीच प्रो.यशपाल बहुत खुलकर बात करते थे। पुराने मित्र प्राय: यशपाल को काफी याद करते थे।
रादुविवि ने किया था सम्मानित
वे यहां के साहित्यकारों,वैज्ञानिकों, विद्वानों से हमेशा बातचीत करते रहते थे। अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों, खोजों और अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए प्रो.यशपाल को रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने मानद उपाधि से सम्मानित किया था। मानद अलंकरण समारोह दिए गए उनके भाषण को आज भी याद किया जाता है।
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