पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी बिजली संकट को लकेर ट्वीट करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश सरकार से कई सवाल किये थे। कमलनाथ ने कहा था कि, ‘अभी भी झूठे आंकड़े पेश कर बिजली संकट, जल संकट और कोयले के संकट को नकारा जा रहा है। सरकार इस दिशा में तत्काल जरूरी कदम उठाकर जनता को राहत पहुंचाने की व्यवस्था करे। साथ ही, मध्य प्रदेश वासियों को कोयला संकट, बिजली की मांग और आपूर्ति के साथ साथ जलसंकट की हकीकत बताए।
वहीं प्रदेश में बिजली संकट के मद्देनजर ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने बीते दिनों दिल्ली पहुंचकर रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की थी। उन्होंने रेल मंत्री को प्रदेश के हालातों से अवगत कराया था। तोमर ने कहा कि, मध्य प्रदेश में कोयले के परिवहन के लिए रोजाना 12.5 रैक की जरूरत होती है, जबकि 8.6 रैक ही मिल पा रहे हैं। इस वजह से रोजाना 15 हजार 600 मीट्रिक टन कोयला कम पड़ रहा है। इसपर ऊर्जा मंत्री ने जवाब दिया कि, मध्य प्रदेश में थर्मल पॉवर हाउस से बिजली उत्पादन क्षमता 4570 मेगावाट है। तय प्रावधान के मुताबिक 26 दिन का कोयला होना जरूरी है। इन 26 दिनों के लिए 40 लाख 5600 मीट्रिक टन कोयला होना जरूरी है।
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कितना कोयला है और कितने की जरूरत है
यहां बता दें कि इस वक्त मध्य प्रदेश के चार थर्मल पावर प्लांट में सिर्फ 2 लाख 60 हजार 500 मिट्रिक टन कोयला ही मौजूद है। पूरी क्षमता से पावर प्लांट चलाने के लिए रोजाना कोयले की खपत 80 हजार मिट्रिक टन होती है। इस हिसाब से पावर प्लांट में सिर्फ साढ़े तीन दिन का कोयला है, लेकिन पूरी क्षमता से थर्मल पावर प्लांट न चलाने की वजह से शुक्रवार को सिर्फ 58 हजार मिट्रिक टन कोयला खर्च हुआ, जबकि 68 मिट्रिक टन कोयला पावर प्लांट्स में आया। मध्य प्रदेश में बिजली बोर्ड से रिटायर्ड चीफ इंजीनियर आर.के अग्रवाल के अनुसार, सरकार जान बूझकर संकट से मुंह मोड़ रही है। ये बिजली अधिकारियों की अदूरदर्शिता थी, जो उन्होंने मार्च के महीने में एनटीपीसी की 1000 मेगावाट बिजली सरेंडर कर दी थी। आज ये बिजली होती तो संकट इतना गंभीर न होता।
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