मातृशक्ति को समर्पित–
इस समिति से दुर्गापूजा की कई यादें जुड़ी हुई हैं। यहां दुर्गापूजा में एक विशेष परंपरा निभाई जाती है। समिति सदस्यों ने बताया कि शारदेय नवरात्र की सप्तमी के दिन महिलाएं लाल रंग के परिधान में महाआरती करती हैं। उस दिन आरती से लेकर प्रसाद वितरण में पुरुष नहीं होते हैं, सारा काम महिलाएं ही करती हैं। बैठकी के दिन दीक्षितपुरा से चेरीताल, फुहारा, कमानिया होते हुए नुनहाई तक श्रद्धालु मां की सात फीट ऊंची भव्य प्रतिमा कंधे पर लाते हैं।
चांदी की मूर्ति से हुई शुरुआत
समिति के अध्यक्ष विनीत सोनी पप्पू ने बताया कि अंग्रेजों के जमाने में सन् १८६८ में कलमन लाल सोनी ने चांदी की छोटी मूर्ति रखी। हिन्दुओं के साथ ८-१० मुस्लिम परिवारों ने सहयोग कर दुर्गोत्सव शुरू कराया। नुनहाई में अब मुस्लिम परिवार नहीं हैं, लेकिन सद्भाव की स्मृति में हरे रंग का कपड़ा लगाया जाता है। सन् १८७४ से झंडा सोनी के नेतृत्व में बुंदेलखंडी शैली की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित होने लगी। १९३२ में आनन्दी लाल, गया प्रयाद नरवरिया और उसके बाद रामदयाल गुरु, महादेव प्रसाद सोनी, गौरी शंकर मालगुजार, लक्ष्मण अग्रवाल, जितेश भोला, मुकेश अग्रवाल, दिलीप अग्रवाल, नारायण दास, अशोक और शंकर गलाई वालों ने भव्यता प्रदान की।
चांदी के रथ पर होंगी विराजमान
विनीत सोनी ने बताया कि अगले वर्ष दुर्गोत्सव का १५० वर्ष होगा। उस वर्ष मातारानी चांदी के रथ पर विराजमान होंगी, इसकी तैयारी चल रही है। सुरेश जौहरी, गुलाब चंद बिलैया, मदन केशरवानी, मंगल भाई, रम्मन केशरवानी, राजू चौरसिया, सत्यप्रकाश सराफ, प्रमोद सोनी, आनन्द सोनी, अमित सराफ, मनोज विश्वकमा, अरविन्द सोनी, विजय सुहाने, राजा सराफ, नरेश मीना एवं मुन्ना रैकवार आरती में शामिल हुए।
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है।
चंद्र दर्शन- गहरा नीला
चंद्र दर्शन के दिन नीला रंग पहने। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा- पीला
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति ? जागृत होती है।
चंद्रघंटा पूजा- हरा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है।
कुष्माण्डा पूजा- स्लेटी
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
स्कंदमाता पूजा- नारंगी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। नारंगी रंग ताजगी का ***** है।
कात्यायनी पूजा- सफेद
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा।
कालरात्रि पूजा- गुलाबी
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है।
महागौरी पूजी- आसमानी नीला
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।