जबलपुर। भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को युद्ध का देवता माना जाता है। यदि आप इनका ध्यान, पूजन और मंत्रों का जाप करते हैं तो यकीन मानिए कि आप को अपने काम में विजय अवश्य प्राप्त होगी। युद्ध कैसा भी हो सकता है। दुश्मन पर विजय प्राप्त करने का, शिक्षा पर, नौकरी पर या फिर बिजनेस पर विजय प्राप्ति का। भगवान कार्तिकेय शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। पं. उमकांत ओझाजी की मानें तो कोर्ट-कचहरी, जमीन-जायदाद, पैसे आदि के विवाद को निपटाने से पहले भगवान कार्तिकेय की आराधना की जाए तो उसमें सफलता प्राप्त होती है। तो आइए हम आपको भगवान कार्तिकेय के सिद्ध मंत्रों को बताते हैं, जिसने आप विजयश्री हासिल कर सकते हैं।
इस दिन करें विशेष उपासना
शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन बड़ा ही शुभ माना जाता है। इस दिन पूजन से रोग, दुख और दरिद्रता का नाश होता है। बताया जा रहा है कि इसी दिन कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का विनाश किया था। इनके पूजन से जीवन में उच्च योगों की प्राप्ति होती है। स्कंद षष्ठी को व्रत करने से काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, ईष्र्या, अहंकार से निवृत्ति मिलती है।
मिलता है खोया राज्य
पुराणों के अनुसार यदि आप भगवान कार्तिकेय की उपासना करते हैं तो आप खोया साम्राज्य फिर से प्राप्त कर सकते हैं। इनकी उपासना से मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक बनने तकी इच्छा पूरी होती है। इतना ही नहीं आप ऑफिसर बनने का भी सपना इसकी सेवा से पूरा कर सकते हैं। शिक्षा, खेल और सुरक्षा के क्षेत्र में भी आपको बेहतर सफलता के अवसर भगवान कार्तिकेय की कृपा से प्राप्त होते हैं। सुंदरता और माधुर्य आप इनकी कृपा से हासिल कर सकते हैं।
कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए
हरे मुरूगा हरे मुरूगा शिवा कुमारा हरो हरा
हरे कंधा हारे कंधा हारे कंधा हरो हरा
हरे षण्मुखा हारे षण्मुखा हारे षणमुखा हरो हरा
हरे वेला हरे वेला हारे वेला हरो हरा
हरे मुरूगा हरे मुरूगा ऊं मुरूगा हरो हरा
प्रमुख मंत्र
1. ॐ श्री स्कन्दाय नमः
2. ॐ शरवण भवाय नमः
3. ॐ श्री सुब्रमण्यम स्वामीने नमः
4. ॐ श्री स्कन्दाय नमः
5. ॐ श्री षष्ठी वल्ली युक्त कार्तिकेय स्वामीने नमः
भगवान कार्तिकेय के मंत्र
शत्रुओं के नाश के लिए
ऊं शारवाना-भावाया नमः
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा
देवसेना मनः काँता कार्तिकेया नामोस्तुते
ऊं सुब्रहमणयाया नमः
सफलता प्राप्ति के लिए
आरमुखा ओम मुरूगा
वेल वेल मुरूगा मुरूगा
वा वा मुरूगा मुरूगा
वादी वेल अज़्गा मुरूगा
अदियार एलाया मुरूगा
अज़्गा मुरूगा वरूवाई
वादी वेलुधने वरूवाई
कष्टों का नाश करने के लिए
ओम तत्पुरुषाय विधमहे:
महा सैन्या धीमहि
तन्नो स्कन्दा प्रचोद्यात:
ये हैं विशेषताएं
– षण्मुख, द्विभुज, शक्तिघर, मयूरासीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित हैं ये ब्रह्मपुत्री देवसेना-षष्टी देवी के पति होने के कारण सन्तान प्राप्ति की कामना से तो पूजे ही जाते हैं, इनको नैष्ठिक रूप से आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय भी है।
– तारकासुर के अत्याचार से पीड़ित देवताओं पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने पार्वती जी का पाणिग्रहण किया। भगवान शंकर भोले बाबा ठहरे। उमा के प्रेम में वे एकान्तनिष्ठ हो गये। अग्निदेव सुरकार्य का स्मरण कराने वहाँ उज्ज्वल कपोत वेश से पहुँचे। उन अमोघ वीर्य का रेतस धारण कौन करे भूमि, अग्नि, गंगादेवी सब क्रमश: उसे धारण करने में असमर्थ रहीं। अन्त में शरवण (कास-वन) में वह निक्षिप्त होकर तेजोमय बालक बना। कृत्तिकाओं ने उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बालक ने छ: मुख धारण कर छहों कृत्तिकाओं का स्तनपान किया। उसी से षण्मुख कार्तिकेय हुआ वह शम्भुपुत्र। देवताओं ने अपना सेनापतित्व उन्हें प्रदान किया। तारकासुर उनके हाथों मारा गया।
– स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय (स्कन्द) ही हैं। समस्त भारतीय तीर्थों का उसमें माहात्म्य आ गया है। पुराणों में यह सबसे विशाल है।
– स्वामी कार्तिकेय सेनाधिप हैं। सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इनकी कृपा से सम्पन्न होता है। ये इस शक्ति के अधिदेव हैं। धनुर्वेद पद इनकी एक संहिता का नाम मिलता है, पर ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।
भगवान् कार्तिकेय के नाम
1. कार्तिकेय
2. महासेन
3. शरजन्मा
4. षडानन
5. पार्वतीनन्दन
6. स्कन्द
7. सेनानी
8. अग्निभू
9. गुह
10. बाहुलेय
11. तारकजित्
12. विशाख
13. शिखिवाहन
14. शक्तिश्वर
15. कुमार
16. क्रौञ्चदारण
कार्तिकेय और मयूर
कार्तिकेय का वाहन है मयूर। एक कथा के अनुसार यह वाहन उनको भगवान विष्णु से भेंट में मिला था। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय की साधक क्षमताओं को देखकर उन्हें यह वाहन दिया था, जिसका सांकेतिक अर्थ था कि अपने चंचल मन रूपी मयूर को कार्तिकेय ने साध लिया है। वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौर पर कार्तिकेय के साथ बताया गया है।
कार्तिकेय प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्र
योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनंदनः ।
स्कंदः कुमारः सेनानीः स्वामी शंकरसंभवः ॥१॥
गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः ।
तारकारिरुमापुत्रः क्रौंचारिश्च षडाननः ॥२॥
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः ।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः ॥३॥
शरजन्मा गणाधीश पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत् ।
सर्वागमप्रणेता च वांच्छितार्थप्रदर्शनः ॥४॥
अष्टाविंशतिनामानि मदीयानीति यः पठेत् ।
प्रत्यूषं श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत् ॥५॥
महामंत्रमयानीति मम नामानुकीर्तनम् ।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥६॥
इति श्रीरुद्रयामले प्रज्ञाविवर्धनाख्यं
श्रीमत्कार्तिकेयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥७॥
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