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दयोदय तीर्थ ग्वारीघाट में आचार्य विद्यासागर के मंगल प्रवचन
‘शुद्धता का प्रतीक है अगस्त नक्षत्र का पानी’
आचार्यश्री ने कहा, अगस्त नक्षत्र के जीवन की तरह हमें जीवन में शुद्धता का समावेश करना चाहिए। अज्ञान के कारण किए जाने वाले संग्रह का भाव अशुद्धता है। जबकि, दान का भाव शुद्धता का प्रतीक है, जो अनेक प्रकार की व्याधियों को दूर करने का कारण बनता है। पाप को भी कुछ अंश में साफ करना प्रारंभ करता है। चांदी और सोने को साफ करने के लिए विशेष द्रव्य का उपयोग किया जाता है। रीठे के द्वारा सोने-चांदी को जैसे चमकाया जाता है, वैसा ही जीवन में भी होना चाहिए। अगस्त नक्षत्र को अपने जीवन में उतारना ही शुभ भाव माना जाता है। यह धर्म की भूमिका में सहज रूप से घटित होना शुरू होता है।
दान से सार्थक होता है जीवन-
आचार्यश्री ने आगे कहा, दानदाता होना सबसे बड़ी बात है। इससे जीवन सार्थक होता है। धर्म की यही प्रेरणा है। इससे परिवार का उत्थान होता है। संतानों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हमने कभी दान का अपने लिए कोई उपयोग नहीं किया, पर लोग देते जाते हैं और धर्म में सब लगता चला जाता है।