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जबलपुर

सिर्फ सती प्रथा नहीं, दुनिया में और भी हैं विचित्र अंतिम संस्कार की प्रथाएं

जानिए मोक्ष के लिए मनुष्य की मृत्यु के बाद का सच, ऐसी प्रथाएं जिन्हें जानकर आप भी शिहर उठेंगे

जबलपुरJun 21, 2016 / 09:46 pm

awkash garg

sati pratha

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जबलपुर। संसार में आने वाले हर धर्म में जन्म लेने वाले भले ही समान तरीके से आएं लेकिन हर धर्म में मृत्यु के बाद मोक्ष के लिए अंतिम संस्कार की प्रथाएं जरूर अलग-अलग हैं। कई धर्म में मनुष्य की मौत के बाद शव को दफनाने का का रिवाज है तो कुछ में जलाकर क्रियाएं पूर्ण होती हैं। मनुष्य के मृत शरीर को जहां जलाने के मामले में भारत की पुरातन ‘सती’ प्रथा के बारे में सोचकर सभी का दिल दहल जाता है, तो दुनिया के कई देशों में इससे भी विचित्र अंतिम संस्कार की क्रियाएं हैं। इनमें से कुछ का चलन अब भी है तो कुछ सदियों पहले की बाते हैं। 1861 में सती प्रथा के विरुद्ध कानून बना, जिसे रोकने में राजाराम मोहनराय का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है। हम आपको बताते हैं दुनिया की ऐसी आठ विचित्र अंतिम संस्कार की प्रथाओं के बारे में जिसे जानकर आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे।

करीबी का गला घोटकर मारना
सती जैसी प्रथा अब भी फिजी के कुछ इलाकों में चल रही है। इस प्रथा में मृत इंसान के किसी करीबी की गला घोट कर मृत्यु कर दी जाती है। यहां के लोगों का मानना है कि मृतक को दूसरी दुनिया में अकेला नहीं जाना चाहिए और उसके साथ उसके किसी करीबी को भी भेजना चाहिए।


मेडागास्कर में खोदते हैं कब्र
द्वीपीय देश मेडागास्कर के मलागासी लोगों में अंतिम संस्कार की ये प्रथा होती है। इसमें समय-समय पर मृतक के करीबी, उसके शव को कब्र में से निकाल देते हैं और उसे साफ कपड़े चढ़ा कर उसके आस-पास नृत्य करते हैं। वे लोग इस प्रथा के जरिए अपने पूर्वजों को याद करते हैं और शव को गांव में घुमाकर वापस दफना दिया जाता है।

पेड़ में लटकते शव
नास्तिक लोगों की एक बड़ी बिरादरी इस प्रथा को मानती है। एक प्राचीन प्रथा के अनुसार, कुछ लोग अपने मृत रिश्तेदारों के शवों को उनके गांव के किसी पेड़ से लटका देते थे। ये प्रथा अधिकांशत: ऐसे लोग मानते हैं जो धर्म के अनुसार नहीं चलते और नास्तिक होते हैं। 

भूनकर खा जाते थे शव
पापुआ न्यू गिनी और ब्राजील के कुछ इलाकों में इस बहुत ही हैरतअंगेज अंतिम संस्कार की प्रथा का पालन होता था। इसमें मृतक के करीबी, उसकी मृत्यु के बाद उसके शरीर को खा लेते थे। ये प्रथा अब खत्म हो गई है लेकिन मान्यता है कि ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि इन इलाकों में खाने की कमी थी।

Dancing with dead

गिद्धों का भोज
पारसी समुदाय की अंतिम संस्कार की प्रथा आज भी चली आ रही है। इस प्रथा के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर को साफ-सफाई कर पारसियों के धार्मिक स्थान, “साइलेंस ऑफ टॉवर” में गिद्धों के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रथा का का महत्व ये है कि मरने के बाद इंसान को उसके मानवीय शरीर को त्याग देना चाहिए।

लटकते हुए ताबूत
प्राचीन चाइना के राजवंश मानते थे कि मृत लोगों के ताबूतों को पहाड़ की चोटी पर रखना चाहिए। इनका मानना था कि निर्जीव इंसान को आकाश के करीब रखने से उसे स्वर्ग नसीब होता है। पुरातत्व विभाग के लोगों को इन पहाडिय़ों से कई ताबूत भी मिले हैं जो सदियों पुराने हैं। 

शवों के करते हैं तुकड़े
अंतिम संस्कार की ये प्रथा आज भी तिब्बत, किंघई और इनर मंगोलिया के इलाकों में पालन होता है। इस प्रथा के अनुसार, इंसान की मृत्यु के बाद उसके शरीर को छोटे टुकड़ों में काट कर पहाड़ की चोटी पर रख दिया जाता है जिसे जानवर, पक्षी सेवन करते हैं। तिब्बत और इनर मंगोलिया में वज्रयान बौद्ध धर्म को मानते हैं, जिसकी मान्यता है कि मरने के बाद इंसान के शरीर का कोई काम नहीं होता।

गड्ढ़े में डाल देते हैं शव
नार्थ अमेरिका के कुछ आदिवासी मृतकों को शहर या गांव के एक गड्ढे में डालकर जंगली जानवर छोड़ देते थे, जिससे वो मृतक के शरीर को खा सकें। आदिवासी समुदाय का मानना था कि इंसान इस दुनिया में सिर्फ एक ही रूप में आता है और उसकी मृत्यु के बाद उसका कोई वजूद नहीं रहना चाहिए।

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