सम्भागायुक्त बहुगुणा ने निरीक्षण के दौरान निगमायुक्त को दिया निर्देश
डायनासोर जीवाश्म क्षेत्र को विकसित करें, महत्व समझने पहुंच सकें पर्यटक
तालाब-बावड़ी संवारें
सम्भागायुक्तने तिलवारा और गढ़ा क्षेत्र के तालाबों और बावलियों को देखा और उनके संरक्षण के लिए निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि मदन महल पहाड़ी पर उपयुक्त स्थल का चयन कर गोंडवाना संस्कृति को संजोने बीस एकड़ क्षेत्र में अर्थ म्युजियम विकसित किया जाए। निगम उपायुक्त राकेश अयाची सहित अन्य विभागों के अधिकारी भी उपस्थित थे।
डायनासोर के अवशेष ढूंढे
सन् 1828 में कर्नल स्लीमन ने छावनी क्षेत्र में सबसे पहले डायनासोर के अवशेष ढूंढे थे, तब देश में इस विशालकाय जीव की नई प्रजातियों के बारे में जबलपुर ने ही दुनिया को बताया था। अब शहर के पास उन खोजों की स्मृतियां ही शेष हैं। साइंस कॉलेज स्थित म्यूजियम में आज भी करीब 7 करोड़ साल पुराना डायनासोर का अण्डा आज भी मौजूद है, लेकिन यह पूरी तरह पत्थर हो चुका है।
घोंसले मिले
सूपाताल की पहाडिय़ों पर भी डायनासौर के घोंसले चिह्नित किए गए थे। यहां ऐसे कई निशान मिले हैं, जो डायनासोर के होने की पुष्टि करते हैं। पाटबाबा में भी डायनासौर के घोंसले खोजे गए थे। जिनके निशान अब भी देखे जा सकते हैं।
जीवाश्म इंग्लैण्ड भेजा
जबलपुर की लम्हेटा पहाडिय़ों से मिलने वाले जीवाश्म जांच के लिए इंग्लैण्ड भेजे गए थे। सालों की रिसचज़् के बाद सामने आया कि जबलपुर डायनासोर की नई प्रजातियों को खोजने के लिए विश्व विज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी है। विशेषज्ञों के अनुसार नमज़्दा किनारे बसे जंगलों में डायनासौर के होने के प्रमाण मिलते हैं जो जंगलों में ही कई किलोमीटर की यात्रा कर अफ्रीका तक पहुंच जाया करते थे।
कब-कब हुई खोज
-वर्ष 1982 में जबलपुर में डायनासोर के अण्डे होने की जानकारी अशोक साहनी ने दी। उन्होंने कुछ अण्डों के जीवाश्म भी खोजे।
-वर्ष 1988 में अमेरिका से आए वैज्ञानिक डॉ. शंकर चटजीज़् ने सबसे पहले मांसाहारी डायनासोर की खोज की थी। उसका जबड़ा और शरीर के अन्य हिस्सों के कंकाल भी बड़ा शिमला पहाड़ी के तल (जीसीएफ सेंट्रल स्कूल नं.1) पर मिले थे। इसमें 6 फीट लंबी खोपड़ी भी थी।
-वर्ष 1988 के बाद कुछ हड्डियां भी हाथ आईं।
-वर्ष 2001 में पांच बसेरे विभिन्न स्थानों से खोजे गए थे। इनमें से एक में पांच से छ: अण्डे होने की जानकारी भी सामने आई थी।