जर्जर सडक़ पर बनेगा व्हाइट टॉपिंग रोड, 30 साल तक रहेगा जीरो मेंटेनेंस
महू से घाटाबिल्लौद तक बनेगी पहली ऐसी सडक़, रोड बनाने में एम-40 ग्रेड का पेवमेंट
इंदौर. इंदौर. मप्र में भी अब 30 साल तक जीरो मेंटेनेंस वाली सडक़ (Road) बन रही है। इसकी खासियत यह है कि गड्ढे होने पर डामर (बिटुमिनस) की पूरी जर्जर रोड उखाडऩी नहीं पड़ेगी। गड्ढे वाली सडक़ पर ही सीधे व्हाइट टॉपिंग की जाएगी। इस रोड को बनाने में एम-40 ग्रेड का पेवमेंट क्वालिटी का कॉन्क्रीट लगेगा। इस कॉन्क्रीट को बनाने में कार्बन उत्सर्जन बहुत कम होता है। इस तकनीक से जल जमाव वाले क्षेत्र में रोड बनना सबसे ज्यादा उपयुक्त है। इसका देश के बर्फीले इलाकों में विस्तार बढ़ा है। इस तकनीक से प्रदेश में संभवत: पहली सडक़ महू से घाटाबिल्लौद रोड बन रही है। एमपीआरडीसी द्वारा ५ करोड़ 94 लाख की लागत से 4.40 किमी की सडक़ बनाई जाएगी।
30 साल में डामर से 70 % लागत कम
इस पर रिसर्च करने वाले तकनीकी (Technique) विशेषज्ञ किशोर सिंह चौहान ने बताया कि आमतौर पर डामर रोड से 30-40 प्रतिशत ज्यादा लागत व्हाइट टॉपिंग रोड की होगी। इस तकनीक से बनी सडक़ मेंटेनेंस फ्री होने के अलावा 30 सालों तक कोई खर्च नहीं आएगा। डामर की सडक़ का 30 साल का आंकलन करें तो निर्माण लागत के अलावा बारिश में सडक़ जर्जर होने पर हर साल मेंटेनेंस पर खर्च आएगा। निर्माण व मेंटेनेंस की लागत जोड़ें तो 30 साल की अवधि का मेंटेनेंस जीरो होने से डामर रोड से व्हाइट टॅापिंग बनने से 70-80 प्रतिशत अतिरिक्त लागत राशि बचेगी।
व्हाइट टॉपिंग सडक़ों की यह है खासियत
बि टुमिनस (डामर) सडक़ों की तुलना में व्हाइट टॉपिंग नई तकनीक है। इसे बनाने में गर्म करने की प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन भी बहुत कम होता है। इस तकनीक से जल जमाव क्षेत्र में रोड बनना सबसे ज्यादा उपयुक्त है। व्हाइट टॉपिंग सडक़ें बेंगलूरु, पुणे, मुंबई, दिल्ली, यूपी, हरियाणा आदि जगहों पर बनी है। यहां तक की सिक्किम में 11 हजार फीट की ऊंचाई और माइनस 3 डिग्री तापमान पर भी यह रोड बनी है। देश में अभी तक करीब एक से दो हजार किमी में इस तकनीक से सडक़ बनी है। खास बात यह है कि इस सडक़ के निर्माण में हर तीन मीटर पर एक फीट का फिल्टर दिया जाता है, जो सडक़ की मजबूती को ओर बढ़ाता है।
हाइवे की मोटाई 6-8 इंच के बावजूद रहेगी मजबूती
म हू-पीथमपुर-घाटाबिल्लौद रोड पेवमेंट क्वालिटी के एम-40 ग्रेड कांक्रीट से बनेगा। इसमें प्रोपलिन फाइबर होता है। 1.2 से 1.3 किलो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में इसे मिलाते हैं। इस तकनीक से बन रहे स्टेट हाइवे की मोटाई महज 6-8 इंच होने के बाद भी मजबूती है। इस पर 30 सालों तक गड्ढे नहीं होंगे। डामर की सडक़ पहली बारिश में ही उखडऩे लग जाती है। इस तकनीक के संबंध में पीडब्ल्यूडी विभाग को भी प्रजेंटेशन दिया है। विभागीय स्वीकृति मिलने पर पीडब्ल्यूडी के ज्यादा पेचवर्क वाली सडक़ों को बनाया जाएगा।
टॉपिंग को लेकर प्रजेंटेशन हुआ है। आगामी समय में विभाग की सडक़ों पर भी प्रयोग करेंगे। डामर की सडक़ों में बार-बार गड्ढे होना बड़ी समस्या है। – बीके चौहान, मुख्य अभियंता, लोक निर्माण विभाग
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