इंदौर. महेश्वर की साडिय़ां और सूट्स, ग्वालियर का सबील कॉटन, मंदसौर की चादरें, चंदेरी की साडिय़ां, इंदौर का सेरेमिक वर्क, जबलपुर के हैंडमेट स्वेटर, देवास के लेदर बैग, भोपाल के जूट बैग, मिट्टी के खूबसूरत बर्तन और खिलौने, उज्जैन की लाख की ज्वेलरी जैसी कई अलग-अलग चीजें मप्र हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम द्वारा आरटीओ रोड स्थित अरबन हाट में आयोजित 10 दिवसीय मालवा आर्ट प्रदर्शनी में देखने को मिली। इस प्रदर्शनी का शुभारंभ शनिवार को हुआ। इसमें प्रदेश के 60 से अधिक शिल्पकार अपनी कला को नुमायां कर रहे हैं।
प्रदर्शनी में भोपाल से आए अनुज राठौड़ अपने साथ गोबर शिल्प की वस्तुएं लाए हैं। गोबर को प्रोसेस कर उन्होंने खूबसूरत घडिय़ां , पैन स्टैंड , मंदिर, तोरण, फ्लॉवर पॉट आदि बनाए हैं। अनुज ने बताया कि मेरी इस थॉट के पीछे ट्रेडिशनल और सोशल दोनों सोच थी। मैंने अपनी दादी-नानी को घर में मांडना बनाते और गोबर का काम करते देखा और तीन साल पहले वहीं से आइडिया आया। हम पहले गोबर को अच्छी तरह साफ करते हैं और प्रोसेस करने के बाद बड़ी शीट्स पर लगाकर हीट देते है जिससे ये सॉलिड हो जाता है। मेहंदी की डिजाइंस के साथ इन्हे सुंदर रूप दिया जाता है । प्रदर्शनी प्रभारी दिलीप सोनी ने बताया कि प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
राष्ट्रपति भवन के लिए बना चुके हैं दरी प्रदर्शनी में सीधी से आए शिल्पी दोश मोहम्मद राष्ट्पति भवन के लिए पंजा दरी बना चुके हैं। उनके हाथों की ये दरियां आज भी राष्ट्रपति भवन में बिछी हुई है। उन्हें इसके लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया है। वे कॉटन ओर सिल्क की दरियों पर शानदार बुनाई करते हैं। उन्होने बताया कि हमारी दूसरी पीढ़ी इस काम में लगी हुई है और लगभग ६० सालों से हम इस पर काम कर रहे है। हमने इसमें कई बदलाव देखे हैं। पहले फ्लॉवर्स की बारीक डिजाइंस पसंद की जाती थी, लेकिन अब हाथी-घोड़े जैसी डिजाइंस की डिमांड ज्यादा है। ३ बाय ५ की एक दरी बनाने में दो कारीगर को १० दिन लग जाते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि इसकी विविंग कठिन होती है।