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इंदौर

यहां भटकता है शिव का अवतार, चमत्कारिक रूप से होती है पूजा

भगवान शिव के यूं तो शास्त्रों में कई अवतार बताए जाते हैं, लेकिन आपको ये जानकर हैरत होगी कि इनमें से एक अवतार ऐसा भी है जो कि आज भी मुक्ति के लिए भटक रहा है।

इंदौरMar 06, 2016 / 07:16 pm

Narendra Hazare

भगवान शिव के यूं तो शास्त्रों में कई अवतार बताए जाते हैं, लेकिन आपको ये जानकर हैरत होगी कि इनमें से एक अवतार ऐसा भी है जो कि आज भी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार है गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। बुरहानपुर जिले में असीरगढ़ नाम के एक किले में आज भी इनका अवतार भटकता है। भगवान शिव की शादी सालगिरह यानि महाशिवरात्री का महापर्व सोमवार को पूरे देश और दुनिया में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान शिव के अवतार के बारे में।

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(इस शिवलिंग पर रोज ताजे फूल चढ़े मिलते हैं। यही हैं चमत्कारिक गुप्तेश्वर मंदिर महादेव।)

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर एक किला है। इसे असीरगढ़ का किला कहते हैं। इस किले में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अश्वत्थामा प्रतिदिन इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। कुछ लोग तो यह दावा भी करते हैं कि उन्होंने अश्वत्थामा को देखा है, लेकिन इस दावे में कितनी सच्चाई है इस पर संदेह है। किले में गुप्तेश्वर महादेव का प्रचीन मंदिर भी है जहां पर चमत्कारिक रूप से रोजाना भगवान शिव की पूजा होती है। लेकिन, आजतक कोई पूजा करने वाले को देख नहीं पाया है। जीर्ण किले में सूरज की पहली किरण के साथ महादेव की पूजा और ताजे फूल उन्हें अर्पित मिलते हैं। ग्रामीण ऐसा मानते हैं कि ये पूजा अश्वतथामा ही करते हैं।

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(असीरगढ़ किले का मुख्यद्वार।)

भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था श्राप

द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।

यहां सबसे पहले पूजा करते हैं अश्वत्थामा

मान्यता है कि इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है। इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं। स्थानीय रहवासियों का दावा है कि सुबह सबसे पहले अश्वत्थामा ही इस मंदिर में आकर शिवलिंग की पूजा करते हैं।

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(किले के अंदर बना है विशाल कुंड जहां की मान्यता है कि यहीं पर अश्वतथामा स्नान करते हैं फिर गुप्तेश्वर मंदिर में पूजा करते हैं।)

अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं अश्वत्थामा

अश्वत्थामा महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। ये कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। अश्वत्थामा अत्यंत शूरवीर, प्रचंडक्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। महाभारत संग्राम में अश्वत्थामा ने कौरवों की सहायता की थी।

चरवाहे के नाम पर पड़ा असीरगढ़ नाम

बुरहानपुर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़ा हुआ है। पहले यह जगह खांडव वन से जुड़ी हुई थी। किले का नाम असीरगढ़ यहाँ के एक प्रमुख चरवाहे आसा अहीर के नाम पर रखा गया था। किले को यह स्वरूप 1380 ई. में फारूखी वंश के बादशाहों ने दिया था। इस किले से कई सुरंगें जुड़ी हुई हैं। इन सुरगों का दूसरा मुँह कहाँ है, यह कोई नहीं बता सकता।

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