बम डिस्पोजल स्क्वॉड इंचार्ज मुश्ताक खालिद ने बताया कि चित्रकूट चौराहे के पास स्थित मैदान से जिंदा हैंड ग्रेनेड को बरामद किया। जांच के बाद ग्रेनेड को स्पेशल बम ट्रॉली में रखा गया। इस तरह के केस में हैंड ग्रेनेड को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए विशेष ट्रॉली का इस्तेमाल किया जाता है। ग्रेनेड को द्वारकापुरी से देवगुराडिय़ा स्थित एपीटीसी लेकर पहुंचे। इसमें एक से डेढ़ घंटे का समय लगा। यहां फायरिंग रेंज में बस को निष्क्रय करने के लिए एक्सप्लोसिव का उपयोग किया गया। रात करीब 2 बजे तक बगैर पिन के हैंड ग्रेनेड को सफलतापूर्वक नष्ट किया गया।
40 फीट का दायरा करता है कवर
बम डिस्पोजल स्क्वॉड प्रभारी ने बताया कि जिंदा हैंड ग्रेनेड यदि फटता है तो वह 40 फीट के दायरे में मौजूद किसी भी इंसान की जान ले सकता है या उसे बुरी तरह घायल कर सकता है। इन तरह के ग्रेनेड का निर्माण आर्मी आर्डिनेंस फैक्ट्री में होता है। जबलपुर में भी आर्डिनेंस फैक्ट्री है। ग्रेनेड खुले स्थान तक कैसे पहुंचा, यह जांच का विषय है।
सीसीटीवी फुटेज को किया जांच में शामिल
टीआइ अनिल गुप्ता ने बताया कि जिंदा हैंड ग्रेनेड मैदान में कैसे पहुंचा, इसकी जांच कर रहे हैं। घटनास्थल के पास लगे कैमरा फुटेज को जांच में शामिल किया है। ग्रेनेड के संबंध में जानकारी जुटाने के लिए महू आर्मी मुख्यालय से पत्र व्यवहार किया है। मालूम हो, हैंड ग्रेनेड मिलने पर मोहन बामनिया ने पुलिस को सूचना दी थी। घटनास्थल से करीब एक किलोमीटर दूर संवदेनशील आरआर कैट है। टीआइ को पता चला कि मैदान में खेलने आए बच्चों ने सबसे पहले आधा किलो वजनी हैंड ग्रेनेड को देखा था।