इधर मछली पकड़ने वाले युवक जोसेफ कंडीर ने बताया कि उसके गांव के जंगल के किनारे गुगरी नदी है। जिसमें सालों भर पानी रहता है और नदी की एक हिस्सा काफी गहरा है। जंगल के कारण इस नदी का पानी गर्मी के दिनों में भी नहीं सूखता। इसका पानी काफी ठंडा है। जोसेफ के अनुसार इस प्रजाति की मछलियां चीन और जापान में पाई जातीं हैं, लेकिन ये झारखंड के कुछ हिस्से में भी पाई जातीं हैं।
गांव के बुजूर्ग तोबियस कंडेर बताते हैं कि सालों पहले इस नदी में इससे भी बड़े आकार की बिंहड़ा मछलियां पकड़ी जा चुकी है। नदी में छछली के डर से कोई नहाने नहीं उतरता। वे बताते हैं कि पानी के अंदर ये मछलियां काफी शक्तिशाली होतीं हैं। किसी भी आदमी के पूरे शरीर को तोड़ डालने की क्षमता इनमें होती है। उन्होंने बताया कि इस मछली में काफी मात्रा में ओमेगा थ्री मिलता है।
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गुगरी नदी में इन दिनों गांव के लोग मछली फंसाने वाले बंशी में छोटी मछलियां बांध कर नदी के किनारे लकड़ी गाड़कर उसके सहारे प्लास्टिक धागे को बांध देते हैं। सुबह उसमें बड़ी मछलियां फंसी रहती है। जोसेफ ने भी ऐसा ही किया था। सुबह साढ़े छह बजे जब वह गया और बंशी निकालने लगा, तो उसे भारीपन का अहसास हुआ। तब उसने आवाज लगाकर अपने साथी हनुख टोंया को बुलाया।
दोनो ने मिलकर जब खींचना शुरू किया, तो अंदर से बड़ी मछली बाहर आई। मछली का पूरा शरीर फिसलनयुक्त था। वह बाहर आने के बाद भी संभल नहीं रही थी। तब दोनों ने डंडे से पीटकर मार डाला। मछली के मरने के बाद उसमें इतना फिसलन था कि गलफड़ के अंदर उंगलियां डालकर उसे उठाना पड़ा।