भोपाल। कथाओं में नागों के कई तरह के किस्से और उनके रूपों के बारें में आपने भी सुना या पढा होगा। इतना ही नहीं रामायण सहित महाभारत में भी नाशलोक का जिक्र आता है, एक ओर जहां रावण की पुत्र वधु नागपुत्री थी वहीं महाभारत में भी के शक्तिशाली बनने में नागलोक की कथा सामने आती है। वहीं नागों का भगवान शिव से भी गहरा संबंध साफतौर पर हिन्दू धर्म में दिखाई देता है।
इस सब बातों के बीच हर किसी को नागों कहां रहते हैं या क्या और क्यों करते हैं, इस बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा होती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश की ही एक गुफा से नागलोक को सीधे रास्ता जाता है। यदि नहीं तो हम आपको बता रहे हैं ऐसी जगह के बारे में जिसे नागलोक जाने का रास्ता माना जाता है।
दरअसल सतपुडा के घने जंगलों के बीच एक ऐसा रहस्यमयी रास्ता है जिसके बारे में मान्यता है कि यह सीधा नागलोक जाता है। इस दरवाजे तक पहुंचने के लिए खतरनाक पहाड़ों को चढ़ाई और बारिश में भीगे घने जंगलों की खाक छानना पड़ता है। तब जाकर आप नागद्वारी तक पहुंच सकते हैं। ये जगह मप्र के एकमात्र हिल स्टेशन पचमढ़ी के जंगलों में मौजूद है, जहां साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए जाने की परमिशन मिलती है।
नाग पंचमी पर मेला
जानकारी के अनुसार नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका साल में सिर्फ एक बार ही मिलता है। यहां सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण रिजर्व फारेस्ट प्रबंधन यहां जाने वाले रास्ते का गेट बंद कर देता है। वहीं हर साल नाग पंचमी पर यहां एक मेला भरता है।
इसमें भाग लेने के लिए जान जोखिम में डालकर लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे हैं। जानकारी के अनुसार सावन में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
नागदेव कई रूपों में दर्शन देते हैं यहां…
दरअसल नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। जिसमें में नागदेव की कई मूर्तियां हैं। वहीं चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्वर्ग द्वार स्थित है। यहां भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं।
मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
जानकारों के अनुसार नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में आपका सामना कई जहरीले सांपों से हो सकता है, लेकिन खास बात यह है कि ये सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। श्रद्धालु सुबह से नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं। इस 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा को पूरा कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है।
पीढ़ियों से यहां आ रहे है भक्त
जानकारों के मुताबिक नागद्वारी मंदिर की धार्मिक यात्रा को 100 साल से ज्यादा हो गए हैं। लोग 2-2 पीढ़ियों से यहां मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं।
इसके तहत सबसे पहले 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। इसके बाद 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ। इस वर्ष यानि 2017 में ये यात्रा 18 जुलाई से शुरू हुई जो 28 जुलाई तक चलेगी।
ये है मान्यता
माना जाता है कि पहाड़ियों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से भक्तों पर से कालसर्प दोष दूर हो जाता है। वहीं यह भी मान्यता है कि नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में स्थित शिवलिंग में काजल लगाने से हर मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यात्रा में ये हैं समानताएं
बाबा
अमरनाथ और नागद्वारी की यात्रा
सावन मास में ही होती है। बाबा
अमरनाथ की यात्रा के लिए ऊंचे हिमालयों से होकर गुजरना होता है।
जबकि नागद्वारी की यात्रा सतपुड़ा की घनी व ऊंची पहाडिय़ों में सर्पाकार पगडंडियों से पूरी होती है। दोनों ही यात्राओं में भोले के भक्तों को धर्म लाभ के साथ ही प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं।
यह जानकारी है काम की
यदि कोई भक्त यहां जा रहा है तो हम उसे यह जानकारी देना चाहेंगे कि जल गली से 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा में भक्तों को दो दिन लगेंगे। यहां गुफा में विराजमान नाग देवता के दर्शन भक्त करते हैं।
इसके अलावा नागद्वार मंदिर की यात्रा श्रद्धालु सुबह ही शुरू करते हैं। ताकि शाम तक गुफा तक पहुंच जाएं। वहीं जंगल में जंगली जानवरों और अन्य जहरीले जीवों का खतरा रहता है। पिछले साल इस यात्रा के लिए करीब 4 लाख श्रद्धालु आए थे। माना जा रहा है कि इस बार आंकड़ा बढ़ सकता है।